पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३९९

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उसने बड़ी योग्यता के साथ अपने राज्य का विस्तार किया था। उसके भाई बख्तसिंह को उसके कारण अपने अधिकारों से वंचित होना पड़ा था। इन स्मारकों में पिता की हत्या करने वाले अभय सिंह और उसके भाई बख्तसिंह-दोनों के स्मारक हैं। उन दोनों भाइयो के स्मारकों की पंक्ति में विजय सिंह का भी स्मारक है। मैंने आश्चर्यचकित होकर इस को देखा और बड़ी गम्भीरता के साथ उस पर विचार करता रहा। अभयसिंह ने अपने पिता अजितसिह की हत्या की थी और बख्तसिंह कभी अपनी योग्यता एवम् शक्ति का परिचय नहीं दे सका। परन्तु विजयसिंह ने अपने जीवन के अन्तिम समय तक जिस वीरता और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया, उसकी पूरी प्रशंसा नहीं की जा सकती। लेकिन आश्चर्य यह है कि इन तीनो के स्मारकों को बनवाने मे किसी प्रकार का अन्तर नही रखा गया। यह बात मेरी समझ में नही आयी। एक पतित और श्रेष्ठ में अगर कोई जाति अन्तर रखना नहीं जानती तो उस जाति को धिक्कार है। इससे अधिक उसको और क्या कहा जा सकता है। ऐसे देश मे जो श्रेष्ठ और पतित का अन्तर रखना नहीं जानता और जिसकी नजरों में दोनों का मूल्य एक है, उस देश मे भविष्य मे विजयसिंह की तरह के शूरवीर पुरुप पैदा नहीं हो सकते। विजयसिंह के तीन लड़के थे। बड़े लड़के जालिमसिंह का वर्णन इस इतिहास मे पहले किया जा चुका है। इन तीनों लड़को के स्मारक उनके पिता विजयसिंह के स्मारक के पास बने हैं। उनके कुछ फासले पर राजा भीमसिंह और उसके भाई एवम् मारवाड के वर्तमान राजा के पिता गुमान सिंह का स्मारक है । गुमान सिंह की मृत्यु छोटी अवस्था में ही हो गयी थी। वह भीमसिंह का बड़ा भाई था। इस श्रेणी के बिल्कुल अन्त मे छत्रसिह का स्मारक बना हुआ है। उसके स्मारक को देखकर मुझे अच्छा नहीं मालूम हुआ। अपने साथ के पथ-प्रदर्शक की तरफ देखकर मैंने पूछाः "यहाँ पर मारवाड़ के उन राजाओ के स्मारक नहीं बनवाये गये, जो छत्रसिंह के मुकाबले में बहुत श्रेष्ठ थे और जिनके स्मारक यहाँ पर बनने चाहिए थे। लेकिन उनके स्मारकों को न बनवाकर किसी ने छत्रसिह का स्मारक बनवाया है, क्या आप बता सकते हैं?" राज्य के अनुचर ने मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा : "माता के प्रेम के कारण ही छत्रसिंह का यह स्मारक वनवाया गया है।" उस स्थान पर मुझे यह भी मालूम हुआ कि प्रत्येक महीने की अमावस्या का दिन मारवाड़ में पवित्र माना जाता है। उस दिन राजा यहाँ पर आकर इन स्मारकों को अपनी श्रद्धांजलि देता है। मैंने इस प्रकार की और भी कुछ बाते सुनी। परन्तु यहाँ आकर में जो वाते जानना चाहता था और जिनकी मे खोज में था, उनको मे जान न सका। इसका बहुत कुछ कारण राजा का भेजा हुआ अनुचर है, जो मेरा पथ-प्रदर्शन कर रहा है। यह इतना योग्य नहीं है कि मेरी आवश्यकता के अनुसार सहायता कर मक और मेर उन प्रश्नो का जवाब दे सके, जो मेरे काम के है और जिनका सम्बन्ध यहाँ के प्राचीन इतिहास के साथ है। अगर मैने मारवाड़ का प्राचीन इतिहास पहले से पढा न होता तो यहाँ आकर में जो जान सका हूँ, उसको भी में समझ न सकता और मेरा यहाँ आना किसी काम का साबित न हाता। वडी सावधानी के साथ में अपने पथ-प्रदर्शक से काम ले रहा था। उसके द्वारा मुझे एक बहुत अच्छी बात सुनने को मिली। राजा अजितमिह के मरने पर उसके मृत शरीर के 395