पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/४२८

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बडे असमंजस में पड़कर उसने एक रास्ता निकाला और बख्तसिंह की समस्या को सुलझाने के लिए उसने निश्चय कर लिया। स्वर्गीय अजित सिह का एक लड़का ईडर का शासक था। उसकी एक लडकी ईश्वरी सिंह को ब्याही थी। ईश्वरी सिंह अपनी उस रानी के पास गया और महल में बैठकर उसने परामर्श किया। ईश्वरी सिंह स्वर्गीय अजित सिंह की हत्या का बदला लेना चाहता था और अपने दामाद रामसिंह के अधिकारो की रक्षा भी करना चाहता था। उसने रानी से बातें करते हुए कहा- "मेरे सामने एक विकट समस्या है। इस समय रामसिंह और वख्तसिंह के बीच में भयानक संघर्प है। में जिसका समर्थन करूँगा, उसी के पक्ष में मुझे युद्ध करना पड़ेगा। इसलिये कि युद्ध के द्वारा ही इन दोनो की समस्या का निर्णय हो सकता है। अगर मैं बख्तसिंह का विरोध करता हूँ तो में सफलता की आशा नहीं करता और अगर मैं रामसिंह का समर्थन करता हूँ तो समाज मुझे क्या कहेगा। इसलिये कि पिता की हत्या कराने के बाद अभयसिंह मारवाड़ के सिहासन पर बैठा था और उसके बाद उस राजसिंहासन पर अधिकार रामसिंह को प्राप्त हुआ। इस दशा में में इन दोनों में से किसी के पक्ष का समर्थन नही करना चाहता। इसके लिये मुझे क्या करना चाहिये। जिससे मुझे किसी प्रकार का आघात न पहुंचे। इस संकट से मुक्ति पाने के लिये एक मात्र तुम्हीं मेरी सहायक हो सकती हो।" वड़ी देर तक परामर्श करने के बाद निश्चय हुआ कि विप को विप के द्वारा ही नष्ट किया जाता है। अपराधी के साथ अपराध करना किसी प्रकार अधर्म नहीं है। इस निर्णय में एक सकेत था। उसको समझ कर ईश्वरी सिंह ने उसको स्वीकार कर लिया। इसके बाद उसको कुछ शान्ति मिली। ईश्वरी सिंह की यह रानी ईडर की राजकुमारी थी और वह बख्तसिंह की भतीजी थी। अपने पति के जीवन में पैदा हुए संकट को दूर करने के लिये उसने जो निर्णय किया था उसके लिये उसने तैयारी की और उसके बाद भेंट करने के लिए उसने अपने चाचा बख्तसिंह के पास सन्देश भेजा। बख्तसिंह इस समय जिस स्थान पर मौजूद था, वह स्थान मेवाड़, मारवाड़ और आमेर-तीनो राज्यों की सीमा के बीच में पड़ता था। बख्तसिंह ने अपने पास भतीजी को आने और भेंट करने के लिये अनुमति दे दी। ईश्वरी सिंह की रानी अपने साथ कुछ बहुमूल्य वस्त्रो को लेकर और उनको उपहार में देने के लिये चाचा से भेंट करने के लिये रवाना हुई। वख्तसिंह से भेंट करके उसकी भतीजी के जाते ही उसको भयानक रूप से ज्वर आ गया और शक्तिशाली बख्तसिंह को उस ज्वर ने क्षण भर में विहल कर दिया। बख्तसिंह की इस दशा को देखकर तुरन्त वैद्य वुलाया गया। उसने आकर बख्तसिंह को देखा और उसने कहा. "आपको स्वस्थ करने के लिये किसी भी औपधि में शक्ति नहीं है।" राठौर राजा बख्तसिंह ने वैद्य के मुख से इस बात को सुनकर कहाः "क्या तुम मुझको स्वस्थ नहीं कर सकते? अगर मेरे रोग को दूर करने की शक्ति तुममें नहीं है तो फिर तुम मेरी दी वृत्ति का उपयोग क्यो करते हो? तुम्हारी चिकित्सा का फिर कौन-सा उपयोग हो सकता है।" बख्तसिंह के मुख से इस आलोचना को सुनकर वैद्य ने राजा के खेमे के पास जमीन मे एक गड्ढा खोदा और उसमें जल भर दिया। इसके बाद उसमें उसने अपनी एक औपधि 424