पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/५५

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अपनी पूरी शक्तियों का प्रयोग किया था, उसी के बेटे जोरावर सिंह ने इस समय सालिम सिंह के प्राणों की रक्षा की। जिस जोरावर सिंह ने अपनी मेना के साथ आक्रमण करके मूलराज को कारागार से निकाला था और फिर उसे सिंहासन पर बिठाया था, उसी मूलराज के मंत्री सालिम सिंह ने इन सारी बातो को जानते हुए भी, मंत्री-पद पाने के बाद जोरावर सिंह के साथ भयानक अन्याय किया और जो सामन्त राज्य से निर्वासित किये गये थे, उनके साथ जोरावर सिंह को भी राज्य से निकाल दिया गया। जिस सालिम सिंह ने जोरावर सिंह के साथ इस प्रकार के अत्याचार किये थे, उस सालिम सिंह के प्राणों की रक्षा करने वाला एक मात्र जोरावर सिंह ही था। यदि उस समय जोरावर सिंह न होता तो मारवाड़ के अभिषेक से लौटने के बाद मार्ग में जैसलमेर के सामन्तों ने उसको जान से मार डाला होता। सालिम सिंह की यह घटना उस समय की है, जब जैसलमेर के निर्वासित सामन्त राज्य से बाहर थे। सालिम सिंह ने छुटकारा प्राप्त करके निर्वासित सामन्तों को उनकी जागीरें दीं। परन्तु राज दरवार में वे सामन्त अपने पूर्व के अधिकारों से अव भी वंचित बने रहे। जैसलमेर की राजधानी में रायसिंह के लौट कर आने पर रावल मूलराज ने उसे देवा के दुर्ग में भेज दिया और उसे वहाँ पर कैद कर लिया गया। रायसिंह के लड़के अभय सिंह और धौकल सिंह निर्वासित सामन्तों के साथ बाडमेर में रहते थे। मूलराज ने अपने दूतों के द्वारा सामन्तों के पास संदेश भेजकर अपने दोनों पौत्रों को बुलवाया था। लेकिन सामन्तों के न भेजने पर मूलराज ने अपनी सेना भेजकर वाडमेर को चारों तरफ से घेर लिया। वहाँ पर जो निर्वासित सामन्त रहते थे, उन्होंने छ: महीने तक वहाँ के दुर्ग की रक्षा की। अन्त में खाने-पीने का कोई प्रवन्ध न रहने के कारण उन सामन्तों ने आत्म-समर्पण कर दिया। सामन्तों ने रायसिंह के दोनों बालकों को मूलराज के बुलाने पर भी न भेजा, इसका कारण था। उनको मूलराज पर विश्वास न था। इसलिए जोरावर सिंह के आश्वासन देने पर दोनों राजकुमार मूलराज के पास भेज दिये गये। मूलराज ने उन दोनों लड़कों को देवा के दुर्ग में रायसिंह के साथ रहने के लिए भेज दिया। उसी दुर्ग में रायसिंह की स्त्री भी उसके साथ रहती थी। अचानक आग लग जाने के कारण उस दुर्ग में रायसिंह और उसकी स्त्री जल गयी। अभयसिंह और धौकलसिंह दोनों उस आग से किसी प्रकार बच गये। सालिम सिंह ने जोरावर सिंह के संरक्षण में अभय सिंह और धौकल सिंह को जैसलमेर से दूरवर्ती रामगढ़ नगर में भेज दिया। इसमें मंत्री सालिम सिंह की दूरदर्शिता थी। रायसिंह के राजकुमारों के नाम पर राज्य के सामन्त किसी भी समय मूलराज के साथ विद्रोह कर सकते थे। इस संकट से मूलराज को सुरक्षित रखने के लिए सालिमसिंह मेहता ने उन दोनों बालकों को राज्य से दूर भेज दिया था। रायसिंह के दोनों राजकुमारों को जैसलमेर लाने के समय जोरावर सिंह ने आश्वासन दिया था। इसलिए जब उन दोनों राजकुमारों को राज्य से सुदूरवर्ती स्थान पर भेजने का आदेश हुआ, उस समय जोरावर सिंह को सन्देह पैदा हुआ। इसी संदेह के आधार पर जोरावर सिंह ने राज दरवार में निर्भीक होकर मूलराज से कहा: "आपके सिंहासन के उत्तराधिकारी राजकुमार अभयसिंह के जीवन का उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है। जिस राजकुमार को राज्य के सिंहासन पर किसी समय वैठना हे उसको किसी दूरवर्ती स्थान पर भेज देने की अपेक्षा राजधानी में रखकर उसे राज्य के शासन की शिक्षा देना आपका कर्त्तव्य है।" 49