पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/६०

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ग्रन्थो मे इस बात के उल्लेख पाये जाते हैं कि बचपन से ही गजसिंह का सम्पर्क सालिमसिंह के साथ अधिक था। सालिमसिंह का पिता मेहता स्वरूपसिंह राज्य का प्रधानमंत्री था और उस दशा मे गणसिंह के साथ सालिमसिंह का सम्पर्क रहना अत्यन्त स्वाभाविक था। शुरू से ही गजसिंह का विश्वास सालिमसिंह ने प्राप्त किया था और उसके जीवन की गति मन को देखकर सालिमसिह ने पहले से ही सभी प्रकार के अनुमान लगा लिये थे। सिंहासन पर बैठने के पहले तक गजसिंह सालिमसिंह को छोड़कर कदाचित दूसरों को जानता भी न था और उसके सिंहासन पर बैठने के बाद भी सालिमसिंह ने उसकी यही अवस्था कायम रखी। प्रधानमंत्री ने गजसिंह को उन राज-कर्मचारियों के सम्पर्क मे रात-दिन रखा, जो सभी प्रकार सालिमसिंह के पक्षपाती थे और उनके जीवन का प्रधान कार्य यह था कि वे रावल गजसिंह से सालिमसिंह की खूब प्रशंसा करते रहे। वे राज कर्मचारी इसके लिए प्रधानमंत्री सालिम सिंह से बरावर पुरस्कृत होते रहते थे। रावल मूलराज के समय प्रधानमंत्री सालिमसिंह को जो अधिकार प्राप्त थे, रावल गजसिह के समय उनमे अपार वृद्धि हो गयी थी। उसके अधिकारो के सम्बन्ध मे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि प्रधानमंत्री सालिमसिंह के हाथो में न केवल राज्य के सव अधिकार थे, बल्कि रावल गजसिंह और उसके परिवार के लोगो को भी सालिमसिंह की इच्छा के अनुसार चलना पड़ता था। उस समय जैसलमेर का राजवंश पूर्ण रूप से प्रधानमंत्री की अधीनता में जीवन बिता रहा था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ राजस्थान के जितने राज्यों की संधियाँ हुई थीं। उनमें सबसे पीछे जैसलमेर की संधि हुई। इस देर सबेर का कारण था वहाँ का प्रधानमंत्री सालिमसिंह कम्पनी के साथ संधि करने के पक्ष मे न था। उसे भय था कि अंग्रेजों के साथ इस प्रकार की संधि हो जाने के बाद मेरे अधिकार छिन जाएगे और उस दशा मे मैं अपनी इच्छा के अनुसार इस राज्य में कुछ न कर सकूँगा। इस भय से उसने बहुत समय तक जैसलमेर की संधि को रोकने की कोशिश की। यद्यपि जैसलमेर राज्य की परिस्थितियाँ इतनी खराब हो चुकी थी कि जिनके कारण कम्पनी के साथ उसकी सन्धि बहुत पहले हो जानी चाहिए थी। परन्तु सालिमसिंह ने ऐसा नहीं होने दिया। उस प्रधानमंत्री की शक्तियां राज्य मे इतनी प्रवल थीं कि कोई भी उसके विरुद्ध वहा पर कुछ कर न सकता था। रावल मूलराज ने स्वयं उसको शासन की सत्ता सौंप रखी थी और वह चुप होकर बैठा रहा। प्रधानमंत्री सालिम सिंह की यह चेष्टा बहुत दिनों तक न चल सकी। इसके दो कारण थे। पहला कारण यह था कि जैसलमेर की राजनीतिक परिस्थितियाँ दिन-पर-दिन भयानक होती जाती थी और दूसरा कारण यह था कि राजस्थान मे जैसलमेर को छोडकर और कोई ऐसा राज्य न रह गया था, जिसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ संधि न की हो। इन दोनों कारणों से जैसलमेर को भी अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी और उसका कार्य 12 दिसम्बर सन् 1818 ईसवी को सम्पन्न हो गया। इस संधि पत्र के हो जाने और उसके कार्यान्वित होने के बाद सालिम सिंह को जो भय था और जिसके कारण उसने अब तक इस संधि को रोके रखा था, वह बहुत कुछ दूर हो गया। बल्कि कुछ ऐसी परिस्थितियाँ भी संधि के द्वारा राज्य मे पैदा हुई, जो पूर्ण रूप से सालिम सिंह के पक्ष में थीं। 54