पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/७८

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20 16 20 100 15 2 खटीक नाई कुलाल जुलाहा रेशम बनाने वाले जुलाहा जैन पुरोहित ब्राह्मण गूजर राजपूत भोजक मीणा भील हलवाई 100 40 5 20 60 15 8 लुहार, बढ़ई 14 4 मनिहार लूनी और मुक्री के बीच का भाग सेवाची कहलाता है। जिस पहाड़ी पर जालौर नगर बसा हुआ है, उसी पहाड़ी की श्रेणी में एक शिखर पर सिवाना नाम का एक दुर्ग बना है। वहीं पर इस राज्य की राजधानी है। इसके सम्बन्ध में वर्णन करने के लिए कोई नयी सामग्री हमारे सामने नहीं है। प्राचीन काल में यह नागौर में होने के कारण मारयाड़ के युवराज की जागीर थी लेकिन धौकल सिंह को सिंहासन पर बिठाने के बाद इसे मारवाड़ राज्य में मिला लिया गया। माचोल और मोरसेन के राजा जालौर के अधीन है। मीणा लोगो की लूट और उनके अत्याचारों से सुरक्षित रहने के लिए माचोल के दक्षिण पूर्व में एक दुर्ग बना हुआ है। मोरसेन की जागीर जालौर की पश्चिमी सीमा पर है। यहाँ पर भी एक दुर्ग है। उस नगर में पाँच सौ घरों की आवादी है। दक्षिण की तरफ वीनमल और सांचोर दो बड़े उपभाग है। ये दोनों मिलकर लगभग एक प्रान्त के बराबर हो जाते हैं। प्रत्येक उपभाग में आठ ग्राम हैं। कच्छ और गुजरात को जाने वाले मार्गो पर होने के कारण ये दोनों नगर बहुत पहले से व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। बीनमल में पन्द्रह सौ घरों का अनुमान किया जाता है और सांचोर में वहाँ से लगभग आधे घरों की आबादी है। लेकिन यहाँ पर धनी और महाजन अधिक रहा करते थे। परन्तु रक्षा का कोई उपाय न होने के कारण इन दोनों नगरों को बहुत बड़ी क्षति पहुँची है। वहाँ पर वाराह का एक मन्दिर है। यह मन्दिर शूकरावतार के सिद्धान्त पर वनवाया गया था और उस मन्दिर में शूकर की मूर्ति पत्थर में खुदवाकर रखवाई गयी है। सांचोर नगर साँचोरा नामक ब्राह्मणो की जन्मभूमि है, इस प्रकार लोगों का विश्वास है कि ये ब्राह्मण मन्दिरों के पुरोहित नियुक्त किये जाते हैं। 72