जुलती है। वे लोग अपनी पगड़ी से पहचाने जाते हैं। मरुभूमि में वे फैले हुये पाये जाते हैं। इस वंश की बहुत-सी शाखाये है। सुमाचा उन शाखाओं में अधिक प्रसिद्ध है। कौरव- कौरव राजपूत धात के थल में पाये जाते हैं। ये लोग भी लूट-मार करते है। लेकिन ये परिश्रमी होते है। इनके रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं होता। ये लोग बड़ी संख्या में भेडे लिये हुये घूमा करते है और जहाँ कही अपनी भेड़ों के चरने के लिए अच्छा स्थान और पानी का सुभीता पाते हैं, वही पर ये लोग ठहर जाते है। रहने के लिए गे झोपड़ियाँ बना लेते हैं, जो पत्तों से ढकी होती हैं। उन झोपडों के भीतर मिट्टी का प्लास्टर लगा रहता है। लुटेरे सेहरीस लोग जंगलों में घूमा करते है और इस प्रकार के स्थानों में रखा हुआ अनाण चोरी करके अथवा लूटकर ले जाते हैं। इनमे से कुछ लोग ऊँट, गायें, भैंसे और बकरियाँ पालते है और वे लोग अपने इन पशुओं को चारन तथा अन्य व्ययसायिगो को बेच देते हैं। दूसरे राजपूतों की तरह ये लोग भी अफीम का सेवन करते हैं। ये लोग इस बात का विश्वारा करते है कि अफीम के सेवन से शरीर में रोग नही पैदा होता और जो रोग पैदा होता है यह सेहत हो जाता है। धात अथवा धाती- यह वंश भी राजपूतों की एक शाखा है। इस वंश के लोग धात मे रहते है। इनकी संख्या कौरवों की अपेक्षा अधिक नही है। इनकी आदतें बहुत कुछ कौरवों से मिलती हैं और ये गड़रियो का जीवन व्यतीत करते है। ये लोग खेती भी करते हैं। लेकिन उसकी पैदावार बरसने वाले पानी पर निर्भर करती है। ये लोग अपना तैयार किया हुआ घी देकर उसके बदले में अनाज और दूसरी आवश्यक चीजें लेते है। राबड़ी और छाछ यहाँ का अच्छा भोजन माना जाता है। लोहाना- इस वश के लोग धात और तावपुरा में अधिक पाये जाते है। पहले ये लोहाना राजपूत कहलाते थे। लेकिन व्यवसाय करने के कारण वे लोग अब वैश्य कहे जाते हैं। जीवन-निर्वाह के लिए कोई भी कार्य करने में वे संकोच नही करते । बिल्ली और गाय के अतिरिक्त अन्य सभी पशुओं का वे लोग मॉस खाते हैं। अरोरा- लहना लोगों की तरह इस जाति के लोग भी खेती और व्यापार करते है। बहुत-से लोग नौकरी भी करते हैं। सिन्ध मे वे छोटी-छोटी नौकरियों में देखे जाते हैं। खाने- पीने की साधारण चीजों पर ये लोग अपना जीवन-निर्याह करते हैं। हम यह ठीक से नहीं जानते कि अरोर में रहने के कारण इन लोगों का नाम अरोरा पड़ गया है। भाटिया- इस जाति के लोग पहले अश्वारोही हुआ करते थे। लेकिन अब जब से वे लोग व्यवसाय करने लगे हैं, उससे उनको बहुत लाभ हुआ है और उनकी आर्थिक परिस्थितियाँ पहले की अपेक्षा अच्छी हो गयी हैं। इनके जीवन की बहुत-सी वातं अरोरा लोगों के समान हैं। सम्पत्ति मे इनका स्थान अरोरा लोगों है। शिकारपुर, हैदरावाद, मूरत और जयपुर में अरोरा तथा भाटिया लोगों की व्य न बनी हुई हैं। ब्राह्मण- मरुभूमि और " धर्म को अपना धर्म त मनु के सिद्धान्तो का यथा सम्भव की लिखी हुई बाते जो नहीं होती, उनकी वे उपेक्षा कर . बातो को ही कान