। मानते हैं। वे लोग जो कुछ कहते हैं, उसी को वे सत्य समझते हैं। ब्राह्मण जनेऊ पहनते हैं। साधारण तौर पर वे खेती का कार्य करते हैं। आवश्यक चीजों को खरीदने के समय मूल्य में वे अपने घरों का घी देते हैं। इनकी संख्या धात में अधिक है। चोर नगर में-जहाँ पर सोढा राणा रहता है-एक सौ घर इन ब्राह्मणों के हैं। कुछ घर अमरकोट में भी पाये जाते हैं। वे लोग मछली नहीं खाते और हुक्का भी नहीं पीते । माली और नाई के हाथ का बना हुआ भोजन वे कर लेते है। भोजन के समय वे चौका नहीं लगाते । सिन्ध में रहने वाली सभी हिन्दू जातियाँ भटियारिन के हाथ का बना हुआ भोजन करती है। इन जातियो के लोग एक दूसरे के बरतनों को खाने-पीने के काम मे लाने के लिए किसी प्रकार का विचार नहीं करते। उनमें मुरदे जलाये नहीं जाते। बल्कि दरवाजे की देहरी के पास जमीन में गाड़ दिये जाते हैं। जिनके पास रुपये-पैसे का सुभीता होता है, वे एक चबूतरा भी बनवा देते हैं। इस प्रकार जो चबूतरा बनता है, उस पर शिव की मूर्ति और उसके ऊपर जल का भरा हुआ कलश रखा जाता है। यहाँ पर कोली और लोहाना लोगों के सिवा सभी हिन्दू जातियों के लोग जनेऊ पहनते हैं। परन्तु भारतवर्ष मे केवल द्विजाति के लोगों को जनेऊ पहनने का अधिकार माना जाता है। रेवारी- भारतवर्ष में रेवारी के नाम से सभी लोग परिचित हैं। मरुभूमि में रेवारी उन लोगों को कहते हैं, जो ऊँटो का पालन करते है। भारतवर्ष मे मुसलमान साधारण तौर पर ऊँट रखा करते हैं। मरुभूमि में ऊँटो के पालन और उनके व्यवसाय का काम करने वाली एक विशेप जाति कहलाती है, जिसे रेवारी कहते हैं। यह हिन्दू जाति है और इस जाति के लोग ऊँटो का पालन और व्यवसाय करते हैं। कहा जाता है कि ऊँटों की चोरी करने में ये लोग बड़े होशियार होते हैं और इसके लिए भाटी लोगों के साथ ये लोग दाऊदपोतरा तक जाते हैं। उनके द्वारा ऊँटों की चोरी करने के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उन लोगों को जब कोई ऊँटों का चरता हुआ समुदाय मिल जाता है तो उनके साथ का शक्तिशाली और अनुभवी आदमी उस ऊँट को अपना भाला मारता है। जिसके निकट वह पहले-पहल पहुंचता है। उस ऊँट के खून में कपड़े को भिगोकर वह अपने भाले की नोक पर रख देता है और दूसरे ऊँट के पास जाकर अपने भाले के द्वारा उसे वह खून सुँघाता है ऐसा करके वह आदमी तेजी के साथ भागता है और ऊँटों का समुदाय उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगता है। जाखूर, शियध और पूनिया जीत वंश की शाखायें है। इन शाखाओं के बहुत से लोगों मे अब तक सामाजिक और धार्मिक पुराने विश्वास पाये जाते हैं। लेकिन अधिक संख्या में लोगों ने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया है। लेकिन अपने वंश की शाखाओं को उन लोगों ने अब तक नष्ट नहीं किया। ये लोग सीधे-सादे और परिश्रमी होते हैं। मरुभूमि और घाटी में ये लोग पाये जाते हैं। इनके बहुत से प्राचीन घराने इधर-उधर जाकर बस गये हैं। ऐसे घरानों में सुलतान और खमरा हमारे सामने ऐसे नाम हैं, जिनके ऐतिहासिक उल्लेख हमें नहीं मिले। जोहिया और सिन्दिल आदि ऐसे अनेक नाम हैं, जिनके उल्लेख मरुस्थली के इतिहास मे हम कर चुके हैं। सेहरी, कोसर, चन्दी, सुदानी- मरुभूमि की मुस्लिम जातियो में सेहरी का प्रधान स्थान है। लोगों का कहना है कि इसकी उत्पत्ति हिन्दू जाति से हुई और इस जाति के लोग 88