पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/९७

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। अरोरा वंश के लोगों से उत्पन्न माने जाते हैं। निश्चित रूप से इसकी उत्पत्ति के बारे में कोई दात नहीं लिखी जा सकती। अरबी में सेहरा मरुभूमि को कहते हैं। सम्भव है उसी सेहरा शब्द से इस जाति का नाम सेहरी रखा गया हो। जो भी हो, इसका निर्णय करने के लिए हमारे पास कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। कोसर अथवा खोसा सेहरी की एक शाखा है। कोसर और सेहरी लोगों में एक-सी आदतें पायी जाती हैं। लूट-मार इन लोगों का प्रमुख कार्य हो गया है और अपने इस कार्य को उन लोगों ने बहुत कुछ नियमित और संगठित बना लिया है। इस वंश के लोगों ने कौरी नाम का एक कर वसूल करने की व्यवस्था की है। उस कर के द्वारा जो धन एकत्रित होता है, उससे संकट पड़ने पर लुटेरों की रक्षा और सहायता की जाती है। इस कर के अनुसार प्रत्येक हल पर एक रुपया और पाँच घड़े अनाज एकत्रित किया जाता है ! किसानों के सिवा गड़रियों से भी यह कर वसूल होता है। इस वंश के लोग प्रायः ऊँटों पर सवारी करते हैं। कुछ लोग घोड़ों को भी सवारी के काम में लाते हैं। तलवार और ढाल उनके विशेष हथियार हैं। बहुत कम लोगों के पास वन्दूक पायी जाती है। लूटने के लिए ये लोग सैकड़ों कोसों की दूरी पर और कभी- कभी जोधपुर तथा दाऊदपोतरा के राज्यों में भी चले जाते हैं। ये लोग राजपूतों के साथ युद्ध करने में डरते हैं। मरुभूमि के दक्षिणी भाग में ये लोग विशेष रूप से रहा करते हैं और नवकोट तथा मित्ती के पास बुलेरी तक वे लोग पाये जाते हैं। इस जाति के बहुत से लोग उदयपुर, जोधपुर और दूसरे राज्यों में नौकरी की खोज किया करते हैं। ये लोग कायर और अविश्वासी समझे जाते हैं। सोढा वंश के जिन लोगों ने इस्लाम-धर्म स्वीकार कर लिया था, सुमाचा लोग उन्हीं में से हैं। वे थल और घाटी में अधिक संख्या में पाये जाते हैं। वहाँ पर उनके बहुत से गाँव हैं। उनकी आदतें घाती लोगों की तरह है। उनमें अधिकांश लोग सेहरी लोगों के साथ सम्पर्क रखने के कारण चोरी और लूट किया करते हैं। वे लोग अपने सिर के बालों को कभी मुंडवाते नहीं हैं। इसलिए वे देखने में पशु मालूम होते हैं। उन लोगों के यहाँ कोई भी पशु रोगी होकर नहीं मरता। क्योंकि बीमार पशु के सेहत होने की आशा न होने पर वे लोग उसे मार डालते हैं। उनकी स्त्रियाँ बड़ी लड़ाकू और असभ्य होती हैं। वे पर्दा नहीं करती। राजूर- इस वंश के लोग भाटी कहे जाते हैं और ये मरुभूमि तथा जैसलमेर की सीमाओं पर रहा करते हैं। ये लोग जैसलमेर और सिन्ध के वीच के थल तक आते जाते रहते हैं। ये लोग खेती करते हैं, भेड़ें चराते हैं और चोरी करते हैं। जिन लोगों ने इस्लाम को स्वीकार किया है, उनमें ये लोग अधिक पतित माने जाते हैं। ओमुर और सुमरा- ये लोग प्रमारों के वंशज हैं और अब वे लोग इस्लाम धर्म पर विश्वास रखते हैं। ये लोग जैसलमेर और ओमुरसुमरा के थल में पाये जाते हैं। इनकी संख्या अधिक नहीं है। इन लोगों के सम्बन्ध में हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं। कुलोरा और तालपुरी-सिन्ध में ये दोनों जातियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं। सिन्ध राज्य का पिछला शासक कुलोरा वंश में ही उत्पन्न हुआ था और वहाँ का वर्तमान शासक तालपुरी जाति का है। इनमें से एक ने ईरान के अब्वशैद से अपनी उत्पत्ति बतलाई है। दूसरे ने पैगम्बर a