पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/९८

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1 साहब से अपनी उत्पत्ति का दावा किया है। कहा जाता है कि ये दोनों बलोच हैं और उनकी मूल उत्पत्ति जिन वंश से हुई है। तालपुरी लोगों की संख्या लोहरी लोगों की संख्या की चौथाई मानी जाती है। उनका सम्बन्ध हैदराबाद राज्य के साथ है। वे थल में नहीं पाये जाते। नुमरी, लुमरी अथवा लुक्का- यह बलोच की शाखा है। अबुल फजल ने इसको कुलमानी से नीचे माना है। युद्ध में तीन सौ सवार और सात हजार पैदल सेना को लाने की इस वंश के लोग शक्ति रखते हैं। इस जाति को विभिन्न लेखको ने विभिन्न नामों से लिखा है। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में भी एक मत नहीं है। इसलिए उस विवाद में पड़ना हमको आवश्यक नहीं मालूम होता है। जीहूत, जूत अथवा जित- यह एक प्राचीन जाति है और वह समस्त राजपूतों की संख्या से भी अधिक पायी जाती है। सम्पूर्ण सिन्ध में समुद्र के किनारे से दाऊदपोतरा तक इस वंश के लोग फैले हुए हैं। थल में उनकी धावनी नहीं है। जिन वंश के लोगों ने पहले पहल इस्लाम धर्म स्वीकार किया था, ये लोग उन्हीं में से हैं। मैर अथवा मेर- इस नाम की एक पहाड़ी जाति है जो सिन्ध की घाटी मे पायी जाती है। इसके सम्बन्ध में जितना मुझे मालूम हुआ। उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि यह भाटी वंश की शाखा है। मोहर अथवा मोर- इस वंश के लोग भी भट्टी माने जाते हैं। जताबुरी, बोरिया- इनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई वात निश्चित रूप से नहीं लिखी जा सकती। इनके जीवन का व्यवसाय अच्छा नहीं है। वातुरी, खेनगढ़ और सम्पूर्ण राजस्थान में फैली हुई जो जातियां केवल चोरी का काम करती है, उन्हीं में इनकी भी गणना है। कोई भी अधम और अपराध का कार्य करने में वे संकोच नहीं करते। इन्हीं कार्यों को उन लोगों ने अपनी आमदनी का साधन बना लिया है। वे लोग दाऊदपोतरा, विजनोर, नोक, नवकोट और ओदुर के थलों में पाये जाते हैं। वे लोग ऊँट रखते है और उनको किराये पर चलाते हैं। कारवों की रक्षा करने के लिए भी उनकी नियुक्ति होती है। जोहिया, दहिया और मंगुलिया- ये जातियाँ पहले राजपूतो की शाखायें मानी जाती थीं, परन्तु अव उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया है। घाटी और मरुभूमि में वे पाये जाते हैं। उनकी संख्या अधिक नहीं है। बैरोवी- यह बलोच की एक शाखा है। इसकी तरह खैरोवी, जनग्री, ओंदुर और वावी नामक अनेक जातियाँ हैं। इन सबके पूर्वज प्रमार और शॉकला राजपूत थे। इनकी संख्या बहुत कम है और ये लोग कोई ऐतिहासिक महत्त्व नहीं रखते। दाऊदपोतरा- यह एक छोटा-सा राज्य है। उसकी गणना हिन्दू धर्म में नहीं की जाती। लेकिन उसे मरुस्थली की सीमा के भीतर माना जाता है। जैसलमेर के भाटी राज्य के कुछ भागों से दाऊदपोतरा बना है। दाऊदपोतरा की नींव डालने वाला सिन्धु नदी के पश्चिम में शिकारपुर का निवासी दाऊद खाँ था और उसने एक साधारण आदमी की हैसियत से रहकर अपने जीवन के बहुत दिन व्यतीत किये थे। उसने इन दिनो में अपनी बहुत बडी शक्ति का सम्पादन कर लिया था, जिसको दमन करने के लिए कन्धार के बादशाह ने अपनी फौज भेजी 90