पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३२

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अध्याय 5 भाग्वत व पुरुणो के अनुसार राजवंश इक्ष्वाकु से लेकर रामचंद्र तक, बुध से लेकर कृष्ण तथा युधिष्ठिर तक सूर्य और चंद्रवंशा की विवेचना करके और वारह सौ वर्षों के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालकर आगामी पृष्ठों में वंशावलियों के दूसरे भाग पर हमने लिखने की कोशिश की है। मेवाड़, जयपुर, मारवाड़ और बीकानेर के वर्तमान राजपूत और उनकी अनेक शाखाओं के लोग अपने को रामचंद्र का वंशज बताते हैं। इसी प्रकार जैसलमेर और कच्छ के राजवंश जो सतलज नदी से समुद्र के किनारे तक भारत के समस्त मरुस्थल में फैले हुए हैं, बुध एवं कृष्ण के वंश में अपनी उत्पत्ति को स्वीकार करते हैं। रामचंद्र और कृष्ण के पश्चात् सूर्य और चंद्र वंश में जो राजा लोग पैदा हुए, उनके सम्बंध में यहाँ पर तीन राजवंशों का वर्णन किया जाता है- (1) सूर्य वंश अर्थात् रामचंद्र के वंशज । (2) इंदुवंश अर्थात् पांडुवंशी युधिष्ठिर के वंशज । इंदुवंश अर्थात् राजगृह के राजा जरासंघ के वंशज । आजकल सूर्यवंशी सभी राजूपत, रामचंद्र के बेटे लव और कुश का वंशज होना स्वीकार करते हैं। मेवाड़ के राणा और बड़गूजर लोग अपनी उत्पत्ति रामचंद्र से बतलाते हैं। नर्बर और आंबेर के कुशवाहा कुश के वंशज माने जाते हैं। मारवाड़ का राजवंश भी इसी वंश में अपनी उत्पत्ति मानता है। आंबेर राज्य के राजा ने जो वंशावलियाँ तैयार करायी हैं उनमें मेवाड़ के राजवंश की उत्पत्ति राम के बड़े पुत्र लव से मानी गयी है और उसमें लव से सुमित्र तक एक नामावली दी गयी है। बाहुमान रामचंद्र से चौंतीसवीं पीढ़ी में हुआ था। उसके शासन का समय रामचंद्र से छ: सौ वर्ष बाद में होने का अनुमान किया जाता है। भागवत के अनुसार, सूर्य अर्थात् राम के वंश का अन्त सुमित्र के साथ दिया गया है। पुराणों के अनुसार, सुमित्र राम के वंश का अंतिम राजा था। इस हिसाब से सूर्यवंश के 56 राजा होते हैं। लेकिन सर विलियम जोंस ने उनकी संख्या 57 लिखी है। यदि उनकी संख्या 56 ही मान ली जावे तो रामचंद्र से सुमित्र तक का समय जो विक्रमादित्य से कुछ ही पहले बीता है, 1120 वर्ष संस्कृत में इंदु और सोम को चंद्र कहते हैं। इसलिये इंदुवंश और सोमवंश का अभिप्राय चंद्रवंश से है । यह भी संभव हो सकता है कि हिन्दू शब्द इंदु से ही बना हो । 1. 32