पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/३७०

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दिल्ली में पहुँचते ही औरंगजेब ने राठौड़ सरदारों को आगे न जाने दिया और उसने उनको दिल्ली में ही रोक लिया। उसने शिशु अजीत को सरदारों से लेने का प्रयत्न किया।

राठौड़ सरदारों के दिल्ली आते ही औरंगजेब ने उनको आदेश दिया कि वे जसवन्तसिंह के शिशु अजीत को उसके हवाले कर दें। जब औरंगजेब ने देखा कि जसवन्त सिंह के सामन्त और सरदार इसके लिए तैयार नहीं हैं तो उसने सामन्तों और सरदारों को अनेक प्रकार के प्रलोभन दिये। उसने उनसे साफ-साफ कहा: "यदि तुम शिशु राजकुमार को मुझे दे दोगे तो मैं सम्पूर्ण मारवाड़ राज्य तुम सब को बाँट दूँगा।"

औरंगजेब किसी भी दशा में जसवन्तसिंह के शिशु अजीत को लेना चाहता था। परन्तु मारवाड़ के सामन्तों और सरदारों ने औरंगजेब की बात को स्वीकर नहीं किया और उन सब ने यह निश्चय कर लिया कि जब तक हम लोग जीवित रहेंगे अजीत को औरंगजेब के हवाले न करेंगे। अजीत को लेने के लिए औरंगजेब बराबर आग्रह करता रहा। उसने अनेक प्रकार की बातें की। परन्तु सामन्तों और सरदारों ने अजीत को देना स्वीकार नहीं किया।

औरंगजेब ने दरबार में मारवाड़ के सामन्तों और सरदारों को बुलाकर अजीत को दे देने के लिए आदेश दिया। राठौड़ सामन्त इसके लिए तैयार न हुए और उन लोगों ने एक मत होकर औरंगजेब को उत्तर देते हुए स्पष्ट कहा-"जिस मातृभूमि के द्वारा हमारा पालन हुआ है उस मातृभूमि की रक्षा हमारी प्रत्येक अस्थिमज्जा और नस के द्वारा होगी।"

सामन्तों और सरदारों ने किसी भी दशा में शिशु अजित को देना स्वीकार नहीं किया। वे बादशाह के दरबार से निकल कर चले आये और जहाँ पर वे ठहरे थे, वहाँ वे पहुँच गये। उसके थोड़े ही समय के बाद मुगलों की एक सेना ने आकर उनको घेर लिया। औरंगजेब के इस अत्याचार से राठौड़ सामन्त बहुत क्रोधित हुए, किन्तु वे सावधान होकर अजीत के प्राणों की रक्षा का उपाय सोचने लगे। सभी ने मिलकर एक निर्णय कर लिया। राजधानी के हिन्दुओं में मिठाईयाँ पहुँचाने की तैयारियाँ होने लगीं और टोकरों में मिठाईयाँ भर-भरकर हिन्दुओं के यहाँ भेजना शुरू कर दिया। इस प्रकार जो हजारों टोकरे हिन्दुओं के घरों पर पहुँचाने के लिए रवाना हुए, उनमें एक टोकरे में शिशु अजीत को छिपा कर भेज दिया गया।

इस मिष्ठान के बँटवाने का कार्य समाप्त होने के बाद सभी राठौड़ों ने अपनी तैयारी की। औरंगजेब ने इस समय जैसा व्यवहार इन राठौड़ों के साथ किया था, उसके बदले में युद्ध करने के सिवा और कोई भी रास्ता राठौड़ सामन्तों के सामने न रह गया था। इसलिए युद्ध की तैयारी कर चुकने पर और अपने-अपने घोड़ों पर बैठ कर राठौड़ आगे बढ़े और साथ के लोगों को ललकारते हुए राठौड़ सामन्तों ने कहा-"आज हम लोगों के सामने राठौड़ों के गौरव की रक्षा का प्रश्न है। बादशाह ने हमारे सर्वनाश की चेष्टा की है। इसलिए जो संकट हमारे सामने पैदा हुआ है, उसका हम सामना करें और मारे जाने पर स्वर्ग की यात्रा करें।"

राठौड़ वीरों के इन शब्दों को सुनकर भट्ट कवि सूजा ने गम्भीर होकर कहा-"मारवाड़ की लाज आज आप लोगों के हाथों में है। आपके सामने मातृभूमि और राजपूतों के गौरव की रक्षा का प्रश्न है। अपने प्राणों की बलि देकर आपको इस गौरव की रक्षा करनी है।"

इसी समय दुर्गादास ने कहा-"हिन्दुओं का सर्वनाश करके बादशाह का साहस बढ़ गया है। हम सब लोग जितना दबे हैं, उतने ही हम लोग दबाये गये है। आज हम सब

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