पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४४२

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अध्याय-44 भीमसिंह व मानसिंह का काल जालिम सिंह के साथ युद्ध में पराजित होकर भीमसिंह जैसलमेर चला गया। वहाँ पर उसने विजय सिंह की मृत्यु का समाचार सुना। उसने तुरन्त जैसलमेर से चलने की तैयारी की और अपनी सेना के साथ जैसलमेर से बाईस घंटे में जोधपुर पहुँचकर उसने बड़ी शीघ्रता के साथ राज सिंहासन पर अधिकार कर लिया। जालिम सिंह विजय सिंह का सबसे बड़ा लड़का था और प्राचीन प्रणाली के अनुसार राज्य का वही उत्तराधिकारी था। भीमसिंह विजय सिंह का पौत्र था। पिता की मृत्यु का समाचार पाकर जालिम सिंह जोधपुर राजधानी के लिए रवाना हुआ। मेड़ता में आकर उसने मुकाम किया। वहाँ पर उसने सुना कि जैसलमेर से भीमसिंह आकर मारवाड़ के सिंहासन पर बैठ गया है। यह सुनते ही जालिम सिंह को आश्चर्य हुआ। वह चिन्तित होकर वर्तमान परिस्थिति पर विचार करने लगा कि इस समय क्या करना चाहिए। जालिम सिंह के आने का समाचार जोधपुर में भीमसिंह को मिला। उसने यह भी सुना कि जालिम सिंह मेड़ता में आ गया और वह सिंहासन पर बैठने के लिये आया है। इस प्रकार का समाचार पाते ही भीमसिंह ने जालिम सिंह को गिरफ्तार करके लाने के लिये एक सेना रवाना की। जालिम सिंह ने जब यह सुना तो वह बीलाडा चला गया। भीमसिंह की सेना ने वहाँ पहुँच कर उस पर आक्रमण किया। उसमें जालिम सिंह की पराजय हुई इसलिये वह भागकर उदयपुर में राणा के पास पहुँचा। मेवाड़ की राजनीतिक परिस्थितियाँ उन दिनों में बहुत खराब हो गई थीं। इसलिये राणा के यहाँ से जालिम सिंह की कोई सहायता न हो सकी । जालिम सिंह राणा का भांजा था। परन्तु मेवाड़ राज्य की बढ़ती हुई अशान्ति में वह उसकी कोई सहायता न कर सका। इसलिये भीमसिंह के साथ युद्ध करने के लिए मेवाड़ की सेना न भेजकर उसने जालिम सिंह को राज्य की एक बड़ी जागीर दे दी। जालिम सिंह शिक्षित, विद्वान और कई विषयों का एक प्रसिद्ध पंडित था। नैतिक विषयों पर उसकी बड़ी श्रद्धा थी और इतिहास का वह जानकार था। उदयपुर में रहकर वह अपना अधिकांश समय काव्य और इतिहास की आलोचना में व्यतीत करने लगा। जालिम सिंह वहाँ अधिक दिनों तक जीवित न रहा। उसने अपने हाथ से अपनी एक नस काट डाली थी। उससे अधिक रक्त निकल जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। 488