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राजा और प्रजा।
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बहुत ही असंगत जान पड़ती है। जिस विषयमें हम लोगोंकी बात आपसे आप बहुत बढ़ चलती है उस विषयमें अँगरेज लोग बिलकुल चुप रहते हैं और जिस विषयमें अँगरेज लोग बहुत अधिक बका करते हैं उस विषयमें हम लोगों के मुँहसे एक बात भी नहीं निकलती। हम लोग सोचते हैं कि अंगरेज लोग बातोंको बहुत अधिक बढ़ाते हैं और अँगरेज लोग सोचते हैं कि पूर्वीय लोगोंको परिमाणका ज्ञान नहीं है।

हमारे देशमें गृहस्थलोग अपने अतिथिसे कहा करते हैं कि-"सब कुछ आपका ही है-घर-बार सब आपका है।" यह अत्युक्ति है। यदि कोई अँगरेज स्वयं अपने रसोई-घरमें जाना चाहे तो वह अपनी रसोई बनानेवालीसे पूछता है-"क्या मैं इस कमरेमें आ सकता हूँ?" यह भी एक प्रकारकी अत्युक्ति ही है।

यदि स्त्री नमककी प्याली आगे खसका दे तो अँगरेज पति कहता है-"मैं धन्यवाद देता हूँ।" यह अत्युक्ति है। निमंत्रण देनेवालेके घरमें सब तरहकी चीजें खूब अच्छी तरह खा-पीकर इस देशका निमंत्रित कहता है-"बड़ा आनन्द हुआ, मैं बहुत सन्तुष्ट हैं।" अर्थात् मेरा सन्तोष ही तुम्हारे लिये पारितोषिक है। इसके उत्तरमें निमंत्रण देनेवाला कहता है—"आपकी इस कृपासे मैं कृतार्थ हो गया।" इसे भी अत्युक्ति कह सकते हैं।

हम लोगोंके देशमें स्त्री अपने पतिको जो पत्र लिखती है उसमें लिखा रहता है-"श्रीचरणेषु।" अँगरेजोंके लिये यह अत्युक्ति है। अँगरेज लोग अपने पत्रोंमें जिस-तिसको "प्रिय" लिखकर सम्बोधन करते हैं। अभ्यस्त न होनेके कारण हम लोगोंको यह बात अत्युक्ति जान पड़ती है।