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अत्युक्ति।
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भारतवर्षमें लेडी डफरिनके नामसे जो सब अस्पताल खुले हैं उनके लिये इच्छासे अथवा अनिच्छासे भारतवर्षकी प्रजाने ही रुपए एकत्र किए हैं। यह प्रथा बहुत अच्छी तो हो सकती है, लेकिन यह भारतवर्षकी प्रथा नहीं है। इसलिये इस प्रकारके सार्वजनिक कार्य हम लोगोंका हृदय स्पर्श नहीं करते। न करें, लेकिन फिर भी विलायतके राजा विलायतकी प्रथाके अनुसार ही चलेंगे, इसमें कहने सुननेकी कोई बात नहीं है। लेकिन कभी देशी और कभी विलायती बननेसे कोई भी शोभायुक्त नहीं दिखता। विशेषतः आडम्बरके समय तो देशी प्रथा और खर्च आदिके समय विलायती प्रथाके अनुसार चलना हम लोगोंको बहुत अमंगत जान पड़ता है। हम लोगोंके विदेशी शासक यह समझ बैठे हैं कि केवल आडम्बर दिखलानेसे ही प्राच्य हृदय भूल जाता है। इसीलिये वे तीस करोड़ तुच्छ जीवोंको अभिभूत करनेके लिये बड़ी चिन्ता और चेष्टासे और खर्चकी म्यूब कोर-कसर करके एक बहुत बड़ी अत्युक्तिकी तैयारी कर रहे हैं। वे यह नहीं जानते कि प्राच्य हृदय दानसे, दया-दाक्षिण्यने और अवारित मंगल-अनुष्ठानसे ही भूलता है। हम लोगोंका जो उत्सव समारोह होता है वह आहूत और अनाहूत सभीके लिये आनन्द-समागम होता है। उसमें "एहि एहि, देहि देहि, पीयताम् भुज्यताम्" के रखको कहीं भी विराम या रोक नहीं। इसे प्राच्य अतिशयताका लक्षण कह सकते हैं लेकिन यह अतिशयता सच्ची है, स्वाभाविक है। और जो दग्वार पुलिसके द्वारा सीमाबद्ध, संगीतोंके द्वारा कंटकित, संशयके द्वारा वस्त, सतर्क कृपणताके द्वारा संकीर्ण और दया तथा दानसे हीन है, जो केवल दम्भके प्रचारके लिये है वह पाश्चात्य अत्युक्ति है। उससे हम लोगोंका हृदय पीड़ित और लांछित होता है। उससे हम लोगोंकी कल्पना आकृष्ट