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राजा और प्रजा।
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नहीं होती बल्कि प्रतिहत हुआ करती है। उसके मूलमें न तो उदारता है और न प्रचुरता।

यह तो हुई नकल करनेकी अत्युक्ति, लेकिन यह बात सभी लोग जानते हैं कि नकल केवल बाहरी आडम्बर कराके कार्यके मूल उद्देश्यको छुड़ा देती है । इसलिये अँगरेज लोग यदि अपना अंगरेजी ठाठ छोड़कर नवाबी ठाट करेंगे तो उससे जो अतिशयता प्रकट होगी वह बहुत कुछ कृत्रिम होगी, इसलिये उसके द्वारा उनकी जातिगत अत्युक्तिका ठीक ठीक पता नहीं लग सकता। सच्ची विलायती अत्युक्तिका भी एक दृष्टान्त हमें याद आता है। गवर्नमेन्टने हम लोगोंकी दृष्टिके सामने उस दृष्टान्तको पत्थरके स्तम्भके रूपमें स्थायी बनाकर खड़ा कर दिया है, इसीलिये वह दृष्टान्त हमें सहसा याद आ गया। वह है कलकत्तेकी काल-कोठरीकी अत्युक्ति।

हम पहले ही कह चुके हैं कि प्राच्य अत्युक्ति मानसिक शिथिलता है। हम लोग कुछ प्रचुरताप्रिय हैं। हम लोगोंको बहुत किफायत या कंजूसी अच्छी नहीं लगता। देखिए न हम लोगोंके कपड़े ढीलेढाले होते हैं और आवश्यकतासे बहुत अधिक या बड़े होते हैं, लेकिन अँगरेजोंके कपड़ोंकी काट-छाँट बिलकुल पूरी पूरी होती है। यहाँतक कि हम लोगोंके मतसे वे कोर-कसर करते करते और काटते-छाँटते शालीनताकी सीमासे बहुत दूर जा पड़े हैं। हम लोग या तो बहुत अधिक नन्न होते हैं और या बहुत अधिक आवृत। हम लोगोंकी बातचीत भी इसी तरहकी होती है। वह या तो बिलकुल मौनके आसपास होगी और नहीं तो उदार भावसे बहुत अधिक विस्तृत होगी। हम लोगोंका व्यवहार भी वैसा ही होता है, वह या तो बहुत अधिक संयत होता है और या हृदयके आवेगसे उछलता हुआ होता है।