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अत्युक्ति।
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लेकिन अँगरेजोंकी अत्युक्तिमें वह स्वाभाविक प्रचुरता नहीं है। वह अत्युक्ति होने पर भी क्षीणकाय होती है। वह अपनी अमूलकताको बहुत चतुराईसे दबाकर ठीक समूलकताकी तरह सजाकर दिखला सकती है। प्राच्य अत्युक्तिमें 'अति' की ही शोभा है, वही उसका अलंकार है। इसीलिये वह निस्संकोच भावसे बाहर अपनी घोषणा करती है। पर अँगरेजी अत्युक्तिकी केवल 'अति' ही गम्भीर भावसे अन्दर रह जाती है और बाहर वह वास्तवका संयत साज पहनकर खालिस सत्यके साथ एक पंक्ति में आ बैठती है।

यदि हम लोग होते तो कहते कि कलकत्तेकी कालकोठरीमें हजारों आदमी मर गए। हम लोग इस समाचारको एक-दमसे अत्युक्तिके बीच-दरियामें बहा देते। लेकिन हालोवेल साहबने जनसंख्याको बिलकुल निर्दिष्ट करके और उसकी सूची देकर कालकोठरीकी लंबाई-चौड़ाई बिलकुल फुटके हिसाबसे नाप-जोखकर बतला दी है! इस सचमें कहीं कोई छिद्र नहीं है। लेकिन उन्होंने इस बातका विचार नहीं किया कि इस विषयमें उधर गणितशास्त्र उनका प्रतिवादी हो बैठा है। अक्षयकुमार मैत्रेय महाशयने अपने 'सिराजुद्दौला' नामक ग्रंथमें इस बातकी अच्छी तरह आलोचना की है कि हालोवेल साहबका झूट कितनी जग)पर और कितने रूपसे पकड़ा जाता है। हालोबेल साहबकी यह अत्युक्ति हम लोगोंके उपदेष्टा लार्ड कर्जनकी प्रतियोगिता करनेके लिए राजपथके बीचमें जमीन फोड़कर स्वर्गकी और पत्थरका अँगूठा उठाये हुए खड़ी है।

प्राच्य और पाश्चात्य साहित्यसे दो भिन्न प्रकारको अत्युक्तियोंका उदाहरण दिया जा सकता है। प्राच्य अत्युक्तिका उदाहरण तो अलिफ लैलाका किस्सा है और पाश्चात्य अत्युक्तिका उदाहरण रुडयार्ड किप्लिं-