गका 'किम्' नामक ग्रन्थ और उनकी भारतवर्षीय चित्रावली है। अलिफलैलामें भी भारतबर्ष और चीन देशकी बातें हैं, लेकिन सभी लोग जानते हैं कि वे केवल किस्सा कहानी हैं। यह बात इतनी अधिक स्पष्ट है कि उससे काल्पनिक सत्यके अतिरिक्त और किसी प्रकारके सत्यकी कोई आशा ही नहीं कर सकता। लेकिन किप्लिंगने अपनी कल्पनाको छिपाकर सत्यका एक ऐसा आडम्बर खड़ा कर दिया है कि जिस प्रकार किसी हलफ लेकर कहनेवाले गवाहसे लोग प्रकृत वृत्तान्तकी आशा करते हैं, उसी प्रकार किलिंगकी कहानीसे ब्रिटिश पाठक भारतवर्षके प्रकृत वृत्तान्तकी आशा किए बिना नहीं रह सकते।
ब्रिटिश पाठकोंको इसी प्रकार छल करके भुलाया जाता है। क्योंकि वे वास्तविक बातके प्रेमी होते हैं। पढ़नेके समय भी उन्हें वास्तविक बात ही चाहिए और खिलानको भी जबतक ये 'वास्तव' न कर डालें तबतक उन्हें चैन नहीं मिलता। हमने देखा है कि ब्रिटिश भोजमें खरगोश पका तो लिया गया है, लेकिन उसकी आकृति यथासंभव ज्योंकी त्यों रखी गई है। उसका केवल सुखाद्य होना ही आनन्दजनक नहीं है, बल्कि ब्रिटिश भांगी इस बातका भी प्रत्यक्ष अनुभव करना चाहते हैं कि वह वास्तवमें एक जन्तु है। अंगरेजी भोजन केवल भोजन ही नहीं होता, उसे प्राणि-वृत्तान्तका एक ग्रन्थ कह सकते हैं। जब किसी व्यंजनमें किसी पक्षीके ऊपर भूने हुए मैदेका आवरण चढ़ाया जाता है, तब उस पक्षीके पर काटकर उस आवरणके ऊपरसे जोड़ दिए जाते हैं। उनके यहाँ वास्तविकता इतनी आवश्यक है। कल्पनाकी सामामें भी ब्रिटिश पाठक 'वास्तव' को ढूँढ़ते हैं, इसीलिये बेचारी कल्पनाको भी विवश होकर जीजानस 'वास्तव' का स्वाँग रचना पड़ता है । जो व्यक्ति किसी असंभव स्थानमें भी सौंप