बहुराजकता।
पूर्वकालके साथ प्रस्तुत कालकी तुलना करना हम नहीं छोड़ते हैं। पूर्वकाल जब उपस्थित नहीं है तब एकतर्फा विचारमें जो हो सकता है वही होता है; अर्थात् विचारककी मनःस्थिति के अनुसार कभी पूर्व- कालका भाग्य यशःश्रीका अधिकारी होता है, कभी प्रस्तुत कालका । पर ऐसे विचारपर भरोसा नहीं किया जा सकता ।
हम मुगलोंके राज्यमें अधिक सुखी थे या अँगरेजी राज्यमें अधिक सुखी हैं, बहुतसे बड़े बड़े गवाहोंके इजहार सुनकर भी इसका अन्तिम निर्णय नहीं किया जा सकता । मनुष्यका सुखदुःख अनेकानेक सूक्ष्म वस्तुओंपर निर्भर करता है, एक एक करके उन सबका अन्वेषण करना असम्भव कार्य है। विशेषतः इस कारण कि जो काल चला जाता है वह अपना सुबूत और शहादतें भी अपने साथ ही लिये जाता
परन्तु पूर्वकाल और प्रस्तुतकालका एक प्रभेद अन्य सब प्रभेदों में प्रधान है । जिस तरह यह प्रभेद अन्य सब प्रभेदोंसे बड़ा है उसी तरह इसका फलाफल भी हमारे देशके लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। अपने इस संक्षिप्त प्रबन्धमें हम उसी प्रभेदका संक्षेपमें विचार करना चाहते हैं।