नहीं है कि वे शासक हमारी आलोचनाको श्रद्धापूर्वक सुनेंगे। हम
उनकी दण्डशालाके द्वारपर बैठकर उन्हें राजनीतिक प्राज्ञताकी शिक्षा
देनेकी दुराशा नहीं करते । जो कुछ हम कहेंगे वह बात भी बहुत
पुरानी है और उसे सुनकर वे यह भी सोचेंगे कि ये डरकर ऐसी बातें
कह रहे हैं। लेकिन सत्य पुराना होनेपर भी सत्य ही है और यदि वे
उसे भ्रम समझें तो भी वह सत्य ही है। वह बात यह है कि "शक्तस्य
भूषण क्षमा" एक बात और है, क्षमा केवल शक्तका या बलवानका भूषण
ही नहीं है, वह विशिष्ट समयपर शक्तका ब्रह्मास्त्र भी है । लेकिन ऐसे
अवसरपर जब कि हम शक्तके दलमें नहीं हैं, इस प्रकारके सात्विक
उपदेशको लेकर अधिक आलोचना करना हमारे लिये शोभाकी बात
नहीं है।
यह विषय दोनों पक्षोंसे सम्बन्ध रखता है, परन्तु दोनों पक्षोंमें पर- स्पर एक दूसरेके भाव समझनेका जो सम्बन्ध है वह बहुत ही क्षीण हो गया है। एक ओर प्रजाकी वेदनाकी उपेक्षा कर बल अत्यन्त प्रबल रूप धारण कर रहा है, और दूसरी ओर दुर्बलका निराश मनोरथ सफल- ताका कोई मार्ग न पाकर प्रतिदिन मृत्युभयरहित होता जा रहा है । ऐसी दशामें समस्या सहज नहीं है। क्योंकि इस दो पक्षोंके काममें केवल एक पक्षको लेकर जितनी चेष्टा हो सकती हो उतनेहीके लिये हमारा सम्बल है---उतना ही हमारे पास राहखर्च है। तूफानके समय मल्लाह अपनी धुनमें मस्त है; डँड़ोंकी सहायतासे किश्तीको जहाँतक बचाना सम्भव होगा यहाँतक हम उसको अवश्य बचावेंगे। यदि मल्लाह सहायक हो तो अच्छा ही है, यदि न हो तो भी इस दुस्साध्य साधनमें प्रवृत्त होना ही पड़ेगा। डूबते समय दूसरेको गाली देनेसे कोई सान्त्वना नहीं मिल सकती ।