उपदेश दिया जाय तो वह उत्तेजित दशामें उत्तर देता है कि यह तो
धर्मका आदर करना नहीं है, भयके सामने सिर झुकाना है।
अभी थोड़े दिन पहले जो बोअर-युद्ध हुआ था उसमें विजय- लक्ष्मीके धर्मबुद्धिके पीछे पीछे न चलनेकी बात किसी किसी धर्मभीर अँगरेजके मुँहसे सुनी गई थी । युद्धके समय शत्रुपक्षके मनमें भयका उद्रेक कर देनेके निमित्त उसके नगरों और ग्रामोंको उजाड़ कर, घर- बारको भस्म कर, खानेपीनेकी चीजें लूट-पाटकर हजारों निरपराधोंको आश्रयहीन कर देना युद्ध-कर्त्तव्यका एक अंग ही मान लिया गया है मार्शल ला ( फौजी शासन )का अर्थ ही जरूरतके समय न्यायविचार- बुद्धिको परम विघ्न जानकर निर्वासित कर देनेकी विधि और उसके सहारे प्रतिहिंसापरायण मानव प्रकृतिकी बाधायुक्त पाशविकताको ही प्रयोजनसाधनका सर्वप्रधान सहायक घोषित करना है । प्युनिटिव पुलिसके★ द्वारा समस्त निरुपाय ग्रामवासियोंको बलपूर्वक दबा देनेकी विवेकहीन बर्बरता भी इसी श्रेणीकी है। इन सब विधियोंके द्वारा इस बातकी घोषणा की जाती है कि राजकार्यमें विशुद्ध न्यायधर्म ही अपना उद्देश्य सिद्ध करनेके लिये पर्याप्त नहीं हैं।
युरोपकी इस धर्महीन राजनीतिने आज संसारमें सर्वत्र ही धर्म- बुद्धिको विषाक्त कर डाला है । ऐसी दशामें जिस समय कोई विशेष घटना घटने और कोई विशेष कारण उपस्थित होनेपर कोई पराधीन राष्ट्र सहसा अपनी पराधीनताकी वज्रमूर्ति देखकर समष्टिरूपसे पीड़ित हो उठता है, अपने आपको जब सब प्रकारसे उपायहीन देखकर
★ किसी ग्राम या नगरके समस्त निवासियों को अप्रत्यक्ष दण्ड देनेके लिये जो विशेष पुलिस तैनात की जाती है उसे प्युनिटिव पुलिस कहते हैं ।-अनु० ।
रा. १०