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अँगरेज और भारतवासी।

इसीमें अँगरेजोंका दोष हैं। वे किसी प्रकार घरमें ( ठिकानेपर ) आना ही नहीं चाहते। किन्तु दूर ही दूरसे, बाहर ही बाहरसे, सब प्रकारका स्पर्श आदि तक भी बचाकर मनुष्यके साथ किसी प्रकारका व्यवहार नहीं किया जा सकता। आदमी जितना ही अधिक दूर रहता है उसको विफलता भी उतनी ही अधिक होती है। मनुष्य कोई जड़ यंत्र तो है ही नहीं, जो वह बाहरसे ही पहचान लिया जा सके। यहाँ तक कि इस पतित भारतवर्षके भी एक हृदय है और उस हृदय को उसने अपने अँगरखे की आस्तीन में नहीं लटका रक्खा है।

जड़ पदार्थको भी विज्ञान की सहायता से बहुत अच्छी तरह पहचानना पड़ता है और तभी जाकर जड़ प्रकृति पर पूर्ण रूपसे अधिकार किया जा सकता है। इस संसार में जो लोग अपने स्थायी प्रभाव की रक्षा करना चाहते है उनके लिये अन्यान्य अनेक गुणों के साथ साथ एक इस गुण का होना भी आवश्यक है कि वे मनुष्योंको बहुत अच्छी तरह से पहचान सकें, उनके हृदय के भाव समझ सकें। मनुष्यके बहुत ही पास पहुँचने के लिये जिस क्षमता को आवश्यकता होती है वह क्षमता बहुत ही दुर्लभ है।

अँगरेजों में बहुत सी क्षमताएँ हैं किन्तु यही क्षमता नहीं है। बल्कि उपकार करनेसे पीछे न हटेंगे किन्तु किसी प्रकार मनुष्य के पास जाना न चाहेंगे। वे किसी न किसी प्रकार उपकार करके चटपट अपना पीछा छुड़ा लेंगे और तब क्लबमें जाकर शराब पीएँगे, बिलियर्ड खेलेंगे और जिसके साथ उपकार करेंगे उसके सम्बन्धमें अवज्ञाविषयक विशेषणोंका प्रयोग करते हुए उसके विजातीय शरीरको यथासाध्य अपने मनसे दूर कर देंगे।