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राजा और प्रजा।
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न मानेंगे कि उसके समर्थनके लिये लेशमात्र भी अन्याय उचित होगा। विलम्ब अच्छा है, विरोध भी अच्छा है, इनसे दीवार ठोस और कार्य परिपक्व होगा, पर वह इन्द्रजाल अच्छा नहीं है जो एक रातमें ही अट्टालिकाका निर्माण कर दे और तिसपर भी हमसे नकद उजरत लेनेसे इनकार करे । पर हाय न जाने क्यों मनमें इस भयका स्थान अटल हो गया है कि यदि एक क्षणमें ही हमने मेञ्चेस्टरके सारे कार- खानोंपर ताले न चढ़वा दिये तो हमारे किये कुछ भी न हो सकेगा, क्योंकि दीर्घकालतक इस दुःसाध्य उद्देश्यको अटल निष्ठाके साथ स- म्मुख रखनेकी शक्ति हममें नहीं है । यही कारण है कि हम हाथोंहाथ बंग-भंगका बदला चुका लेनेके लिये इतने व्यग्र हैं और इस व्यग्रतामें मार्ग अमार्गका विचार करना ही नहीं चाहते। अपने आप पर विश्वास न रखनेवाली हमारी दुर्बलता, चारों ओरसे उठनेवाली शीघ्रताकी कानोंको बहरा करनेवाली ध्वनिमें भूलकर स्वभावपर अश्रद्धा और शुभबुद्धिको अमान्य करती हुई तत्काल लाभ उठा लेना चाहती है और पीछे बर- सों तक देनेका खाता खतियाती और भुकतान करती रहना चाहती है। मंगलको पीड़ित करके मंगल पाना असम्भव है, स्वाधीनताकी जड़ खोदकर स्वाधीनताका उपयोग करना त्रिकालमें न होनेवाली बात है- इसे क्षणमात्र भी सोचनेका कष्ट उससे सहा नहीं जाता।

हमसे बहुतोको मालूम नहीं और बहुतेरे जानकर भी स्वीकार नहीं करना चाहते कि अनेक अवसरोंपर देशवासियोंपर अत्याचार करके बहिष्कारकी साधना कराई गई है, उनकी इच्छा न रहते हुए, उन्हें जबरदस्ती इस आन्दोलनमें सम्मिलित किया गया है। हम जिस घातको श्रेष्ठ समझते हैं दूसरोंको उपदेश और उदाहरण द्वारा उसकी श्रेष्ठता समझानेमें लगनेवाला विलम्ब यदि हमसे सहन न हो, दूसरोंके