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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१८

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अँगरेज और भारतवासी।


बहुत अच्छा काम हो सकता हो वहाँ हम लोग तीव्र भाषामें आग उगलने लग जाते हैं और जिस अवसर पर किसी साधारण अनुरोध के पालन करनेमें कोई विशेष हानि नहीं होती उस अवसर पर भी दूसरा पक्ष विमुख हो जाता है।

किन्तु सभी बड़े अनुष्ठान ऐसे होते हैं कि उनमें विना पारस्परिक सद्भाव के काम नहीं चलता । पचीस करोड़ प्रजा का अच्छी तरह शासन करना कोई सहज काम नहीं है । जब कि इतनी बड़ी राजशक्ति के साथ कारबार करना हो तब संयम, अभिज्ञता और विवेचनाका होना आवश्यक है । गवर्नमेण्ट केवल इच्छा करके ही सहसा कोई काम नहीं कर सकती। वह अपने बड़प्पन में डूबी हुई है, अपनी जटिलता से जकड़ी हुई है। यदि उसे जरा भी कोई काम इधरसे उधर करना हो तो उसे बहुत दूर से बहुतसी कलें चलानी पड़ती हैं |

हमारे यहाँ एक और बड़ी बात यह है कि ऐंग्लोइंडियन और भारतवासी इन दो अत्यन्त असमान सम्प्रदायोंका ध्यान रखते हुए सब काम करना पड़ता है। बहुतसे अवसरोंपर दोनोंके स्वार्थ परस्पर विरोधी होते हैं। राज्यतंत्रका चालक इन दो विपरीत शक्तियों में से किसी एक की भी उपेक्षा नहीं कर सकता और यदि वह उपेक्षा करना चाहे तो उसे विफल होना पड़ता है। हम लोग जब अपने मन के अनुसार कोई प्रस्ताव करते हैं तब अपने मनमें यही समझते हैं कि गवर्नमेण्ट के लिये मानों ऐंग्लोइंडियनोंकी बाधा कोई बाधा ही नहीं है। लेकिन सच पूछिए तो शक्ति उन्हीं की अधिक है । प्रबल शक्ति की अच- हेला करने से किस प्रकार संकट में पड़ना पड़ता है इसका परिचय एल्बर्ट बिलके विप्लव से मिल चुका है। यदि कोई सत्य और न्यायके पथ में भी रेलगाड़ी चलाना चाहे तो भी उसे पहले यथोचित उपाय से मिट्टी