सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पथ और पाथेय।
१७३


करनेका प्रयत्न कर रहे हैं उन्हींके काममें हाथ बटावेंगे, अपने भीत- रकी सारी शक्तियोंको परिणत कर इस रचनाकार्यमें नियुक्त करेंगे। यदि हम यह काम कर सके, यदि ज्ञानसे, प्रेमसे और कर्मसे भारतके इस उद्देश्यमें अपनी सभी शक्तियोंको नियुक्त कर सके, तभी मोहमुक्त पवित्र दृष्टि से स्वदेशके इतिहासमें उस एक सत्य---नित्य सत्यके दर्शन पा सकेंगे -उस सत्यके दर्शन जिसके विषयमें ऋषियोंने कह रक्खा है-

स सेतुर्विधृतिरेषां लोकानाम्-

वही सारे लोकोंका आश्रय, सारे विच्छेदोंका सेतु है । उसीके लिये कहा है–

तस्य हवा एतस्य ब्रम्हणोनाम सत्यम्---

निखिल सृष्टिके समस्त प्रभेदोंके बीच जो ऐक्यकी रक्षाके लिये सेतुस्वरूप है वही ब्रह्म है, उसीका नाम सत्य है ।


_______