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राजा और प्रजा।
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चरितार्थताको ही सबसे अधिक आदरणीय समझता और समझना चाहता है।

परन्तु प्रवृत्ति-चरितार्थतामें वास्तविकताका हिसाब बहुत ही थोड़ा करना पड़ता है, उपयोगितामें उसकी अपेक्षा बहुत अधिक हिसाब करनेकी आवश्यकता होती है। गदरके समय जिन अँगरेजोंने भारतको निर्दयतापूर्वक पीस डालनेकी सलाह दी थी उन्होंने मानवचरित्रकी वास्तविकताका हिसाब अत्यन्त संकीर्णरूपमें ही तैयार किया था । क्रोधके समय इस प्रकार संकीर्ण हिसाब करना ही स्वाभाविक है, अर्थात् मनुष्य-गणनाके हिसाबसे अधिकतर लोग ऐसा ही करते हैं। लार्ड केनिंगने क्षमाकी ओरसे वास्तविकताका जो लेखा तैयार किया था वह प्रतिहिंसाके हिसाबकी अपेक्षा वास्तविकताको बहुत कुछ बृहत् परिमाणमें और बहुत कुछ गम्भीर विस्तीर्ण भावसे गणना करके किया था ।

पर जो क्रोधमें अन्धा हो रहा है वह लार्ड केनिंगकी क्षमानीतिको 'सेन्टिमेन्टलिज्म ' अर्थात् वास्तववर्जित भावुकता कह डालनेमें तनिक भी संकोच न करेगा । सदासे यही होता आ रहा है । जो पक्ष अक्षौ- हिणी सेनाको ही गणना-गौरवसे बड़ी सत्ता मानता है वह नारायणको ही अवज्ञापूर्वक अपने पक्षमें न लेकर चिन्तारहित होता है। पर यदि जयलाभको ही वास्तविकताका अन्तिम प्रमाण माना जाय तो नारायण अकेले और छोटीसे छोटी मूर्तिमें भी जिस पक्षकी ओर होंगे उसकी जीत अवश्य ही होगी।

इतना सब कह जानेका तात्पर्य यही है कि क्षणिक उत्तेजनाकी प्रबलता और मनुष्य-संख्याकी प्रचुरता देखकर ही यथार्थ तत्त्वके किसी पक्षमें होनेका निश्चय नहीं किया जा सकता। इसे हम किसी प्रकार नहीं