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राजा और प्रजा।


बराबर करके लाइन बिछानी पड़ेगी। यदि धीरज धरकर उस समय थोड़ी अपेक्षा की जाय और उस कामको सम्पन्न हो लेने दिया जाय, तो पीछे बहुत जल्दी जल्दी चलनेका अच्छा सुभीता हो जाता है।

इंग्लैण्ड में राजा और प्रजा में कोई विषमता नहीं है और वहाँ राज्य- तंत्र की कल बहुत दिनोंसे चलती आ रही है जिसके कारण अब उसका चलना सहज हो गया है। लेकिन फिर भी वहाँ यदि कोई हितजनक परिवर्तन करना होता है तो बहुत कुछ कुशलता, बहुत कुछ अध्यवसाय की आवश्यकता होती है और अनेक सम्प्रदायों का अनेक प्रकारसे परिचालन करना पड़ता है । और फिर वहाँ विपरीत स्वार्थका इतना भीषण संघर्ष भी नहीं है । उस देश में जहाँ एक बार युक्ति से किसी प्रस्तावकी उपयोगिता सब लोगोंके सामने प्रमाणित कर दी जाती है तहाँ साधारण अथवा अधिकांश लोगोंका स्वार्थ एक हो जाता है और सब लोग उस प्रस्तावको ग्रहण कर लेते हैं। और हमारे देशमें जब कि दो शक्तियों का झगड़ा है और जब कि हमीं लोग सब बातों में दुर्बल हैं तब केवल बातों के जोरपर गवर्नमेण्ट को विचलित करने की आशा नहीं की जा सकती । यहाँ दूर दूरके दूसरे उपायोंका अवलम्बन करना आवश्यक है।

राजकीय कार्योंमें सभी जगह डिप्लोमेसी ( Diplomacy ) है और भारतवर्षमें हम लोगों के लिये उसकी सबसे अधिक आवश्यकता इस संसार में केवल इसी बात से कोई काम सहज नहीं हो जाता कि हम उस काम के होने की इच्छा करते हैं और हमारी इच्छा अन्याय- मूलक नहीं है । जब कि हम चोरी करने न जा रहे हों बल्कि अपनी ससुराल जा रहे हों तब यदि रास्तेमें कोई तालाब पड़ जाय तब हमें यह प्रण न कर लेना चाहिए कि हम उस तालाब के ऊपर से होकर