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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१९१

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राजा और प्रजा।
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उनके लिये बिलकुल ही फजूल है ? क्या भारतकी पेंशनपर जीनेवाले मि० इलियट भारतकी चञ्चलता दूर करनेके सम्बन्धमें अपने जातिभाइयोंको अब एक भी उपदेश न देंगे ? जिनके हाथमें अजस्र शक्ति है उनके लिये आत्मसंवरणकी कुछ भी आवश्यकता नहीं है और जो स्वभावसे ही अक्षम हैं उन्हींके लिये शम, दम, नियम, संयम सभीकी सारी व्यवस्था है ! उपर्युक्त साहब बहादुरने लिखा है कि जो भारतवासी किसी अंगरेजकी गर्दनकी ओर हाथ बढ़ावे उसको चाहे जिस प्रकार हो, भरपूर प्रतिफल देना ही होगा; जिसमें उसको बच निकलनेका अवसर किसी प्रकार न मिले, इसके लिये पूर्ण सतर्क रहना होगा। और जो अँगरेज भारतवासियोंको परलोक भेज कर केवल राहखर्चके लिये थोड़ेसे रुपए मात्र दे देनेसे छुटकारा पाकर ब्रिटिश न्यायपर कभी न मिटनेवाली कलंककी रेखाको आगमें तपा तपा कर भारतके चित्तको बार बार दाग रहे हैं उनकी ओरसे होशियार रहने की आव- श्यकता नहीं है ? बलके अभिमानसे अन्धी और धर्मबुद्धिसे हीन स्पर्धा ही क्या भारतवर्षमें अँगरेजी शासन और प्रजा दोनोंको ही भ्रष्ट नहीं कर रही है ? जिस समय असमर्थके हाड़-माँस आन्तरिक अग्निसे दग्ध हो रहे हैं, जब हाथों हाथ अपमानका बदला ले डालनेकी चिन्ताके सिवा और कोई ऊँची अभिलाषा उसके मनमें टिक ही न सकती हो उस समय अँगरेजोंका लाल लाल आँखोंवाला 'पिनलकोड' भारतवर्ष में शान्तिकी वर्षा कर सके-इतनी शक्ति भगवानने अँगरेजोंको नहीं प्रदान की ? वे जेलमें ठेल सकते हैं, फाँसीपर टॅगवा सकते हैं, पर हाथसे आग लगाकर उसे पैरसे रौंदकर बुझा देनेकी सामर्थ्य उनमें नहीं हैं। जहाँ जलकी आवश्यकता है वहाँ जल देना ही पड़ेगा-राजाको भी जल ही देना पड़ेगा । यदि वह ऐसा नहीं करता है, यदि अपने