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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१९३

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राजा और प्रजा।
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कहे तो इन मिथ्या शब्दोंका कहनेवाला चाहे राजसिंहासन पर ही क्यों न बैठा हो, सुननेवालोंपर इनका कोई असर न होगा। तुम्हारे 'टाइम्स' के पत्रलेखक 'डेलीमेल ' के संवादरचयिता और 'पायोनि- यर' तथा 'इंग्लिशमैन के सम्पादक अपनी सम्मिलित ध्वनिसे उसे ब्रिटिश पशुराजके भीम गर्जनमें ही क्यों न परिणत कर डालें, इस असत्यके द्वारा हम लोगोंको किसी शुभ फलकी प्राप्ति कदापि न होगी । तुम बलवाले हो सकते हो, पर तुममें इतना बल नहीं हो सकता कि सत्यको आँखें दिखाओ । नए नए कानूनोंकी नई नई हथकड़ियौं गढ़कर तुम विधाताके हाथ नहीं बाँध सकते।

अतः मानव-स्वभावके संघातसे विश्वके नियममें जो वेगपूर्ण भँवर उठ रही है उसकी भीषणताको यादकर अपने इस छोटेसे लेखिके द्वारा उसको दमन करनेकी दुराशा हम नहीं करते। दुर्बुद्धि जब जाग्रत हो चुकी है तब यह बात माननी पड़ेगी कि उसका कारण बहुत दिनसे धीरे धीरे सञ्चित हो रहा था । यह बात याद रखनी होगी कि जहाँ एक पक्ष सब प्रकारसे अशक्त, असमर्थ और उपायहीन कर दिया जाता है अथवा होता है, वहाँ क्रमशः दूसरे प्रबल पक्षका बुद्धिभ्रंश और धर्म- नाश अनिवार्य है। जिसका प्रतिक्षण निगदर और सम्मानभंग किया जाता हो उसके साथ व्यावहारिक सम्बन्ध रखकर आत्मसम्मानको किसी प्रकार उज्वल नहीं रखा जा सकता । दुर्बल के समीप रहकर सबल हिंस्र हो जाता है, अधीनके सम्पर्कसे स्वाधीन असंयमी बनता है। स्वभावके इस नियमका प्रतिरोध करनेमें कौन समर्थ है ? अन्तमें जब यह बात बहुत बढ़ जायगी तब क्या इसका कहीं कोई परिणाम न होगा ? बाधाहीन कर्तृत्वमें चरित्रका असंयम जब बुद्धिको अन्धा कर देता है उस समय क्या वह बुद्धि केवल दरिद्रकी ही हानि ?