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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१९९

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राजा और प्रजा।
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हो सका है। एक ही वेदनाकी अनुभूतिके द्वारा आदिसे अन्ततक आविष्ट, प्राणमय, रसरक्तमय, स्नायु पेशी और मांसके द्वारा जिस प्रकार शरीरकी हड्डियाँ ढकी रहती हैं उसी प्रकार विधि-निषेधकी शुष्क और कठिन व्यवस्थाको बिलकुल ही ढँककर और छुपाकर जिस समय एक ही सरस अनुभूतिकी नाड़ियाँ समग्रके बीच प्राणोंकी चेतनता व्याप्त कर देंगी उसी समय हम समझेंगे कि महाजातिने देहधारण किया है।

हमने जिन सब देशोंके इतिहास पढ़े हैं वे इतिहास बताते हैं कि प्रत्येक देश किसी न किसी खास रास्तेसे अपनी मंजिलको पहुँचा है। उनके परिपूर्ण विकाशमें जो विशेष अमंगल विघ्नस्वरूप था उसीके साथ उन्हें युद्ध करना पड़ा है। एक दिन अमेरिकाके सामने भी यही समस्या थी कि उसके उपनिवेशोंके समुद्रके एक ओर और उनकी सञ्चालिका शक्तिके उसके दूसरी ओर रहते हुए उनका शासन कैसे किया जा सकेगा—शरीर और मस्तिष्ककी इतनी दूरी उनसे किस प्रकार सहन होगी? भूमिष्ट शिशुका जिस प्रकार माताके गर्भके साथ किसी तरहका सम्बन्ध नहीं रह सकता—नाल काट देनी पड़ती है—उसी प्रकार अमेरिकाके सामने जिस समय यह नाल काट देनकी आवश्यकता उपस्थित हुई उस समय उसने छुरी लेकर उसे काट फेंका। फ्रान्सके सामने भी एक दिन यह समस्या थी कि वहाँक शासक और शासित दोनों एक ही जातिके होनेपर भी उनकी जीवनयात्रा और स्वार्थ एक दूसरेसे इतने विरुद्ध हो गए थे कि इस असामञ्जस्यकी पीड़ा सहन करना मनुष्यकी सामर्थ्य के बाहर हो गया था। इस आत्मविच्छेदको दूर करनेके लिये फ्रान्सको रक्तकी नदियाँ बहानी पड़ी थीं।

ऊपरसे देखनेमें अमेरिका और फ्रान्सकी इस समस्यासे भारतवर्षकी समस्या में समानता है। भारतवर्ष में भी शासक और शासित एक दूसरेसे