पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/२०

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अँगरेज और भारतवासी।


ही चलेंगे। क्योंकि यदि हम ऐसा प्रण करेंगे तो कदाचित ससुराल न भी पहुँच सकेंगे । उस स्थानपर तालाबके किनारे किनारे घूमकर ही आगे बढ़ना अच्छा होगा। अपनी राजनीतिक ससुरालमें पहुँचनेके लिये भी जहाँ कि हमारे लिये अच्छे अच्छे पक्कान्न और बढ़िया बढ़िया मिठाइयाँ आदि रखी हुई हैं हमें अनेक प्रकारकी बाधाओंको अनेक उपायोंसे दूर करके आगे बढ़ना पड़ेगा। जिस स्थानपर केवल लाँध- नेसे काम चल सकता हो वहाँ तो हमें लाँघना चाहिए और जहाँ लाँघनेका सुभीता न हो वहाँ हमें क्रोधित होकर और अड़कर न बैट जाना चाहिए, वहाँ घूमकर ही आगे बढ़ना चाहिए ।

डिप्लोमेसीसे हमारा मतलब कपटाचरण नहीं है। उसका वास्तविक मर्म यही है कि अपनी व्यक्तिगत हृदय-वृत्तिके कारण मनुष्य अक- स्मात् विचलित न हो जाय और कार्यका नियम तथा समयका सुयोग समझकर काम करे।

लेकिन हम लोग उस मार्गसे होकर नहीं चलते। काम हो चाहे न हो पर हम लोग बात एक भी नहीं छोड़ सकते। इससे केवल यही नहीं होता कि हम लोगोंकी अनभिज्ञता और अधिवेचना प्रकट होती है बल्कि यह भी प्रकट होता है कि काम करनेकी अपेक्षा हम लोग हुलड़ मचाना, वाहवाही लेना और अपने मनका गुबार निका- लना ही अधिक चाहते हैं। जब इन सब बातोंका हमें कोई सुयोग मिलता है तब हम लोग इतने प्रसन्न हो जाते हैं कि हम लोगोंको यह भी याद नहीं रह जाता कि इन सब बातोंसे हमारे वास्तविक कार्यकी कितनी हानि होती है। और अप्रिय भर्त्सनाके उपरान्त उचित प्रार्थनाको स्वीकृत या पूर्ण करनेमें भी गवर्नमेण्टके मनमें दुबिधा हो जाती है और तब पीछेसे प्रजाकी स्पर्धा बढ़ने लगती है ।