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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/२१

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राजा और प्रजा।
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इसका मुख्य कारण यह है कि मनमें एक प्रकारका असद्भाव उत्पन्न हो गया है और वह असद्भाव दिनपर दिन बढ़ता ही जाता है जिसके कारण दोनों पक्षोंका कर्त्तव्यपालन धीरे धीरे कठिन होता जा रहा है। राजा और प्रजाकी दिनरातकी यह कलह देखनेमें भी अच्छी नहीं मालूम होती । गवर्नमेण्ट भी बाहरसे देखनेसे चाहे जैसी जान पड़े पर फिर भी यह विश्वास नहीं होता कि वह मन ही मन इस सम्बन्धमें उदासीन होगी। लेकिन इसका उपाय क्या है ? हजार हो ब्रिटिश-चरित्र फिर भी तो मनुष्य-चरित्र ही है ।

यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो जान पड़ेगा कि इस समस्याकी मीमांसा सहज नहीं है

सबसे पहला संकट तो वर्णके कारण है । शरीरका वर्ण जिम्म प्रकार धो-पोंछकर दूर नहीं किया जा सकता उसी प्रकार मनसे वर्ण- सम्बन्धी संस्कारका हटाना भी बहुत ही कठिन है। गोरे रंगवाले आर्य लोग हजारों वर्षोंसे काले रंगको घृणाकी दृष्ठिसे देखते आए हैं। इस अवसरपर वेदोंके अंगरेजी अनुवाद एवं इन्साइक्लोपीडियासे इस सम्ब- न्धकै अध्याय, सूत्र और पृष्ठसंख्यासमेत उत्कट प्रमाण देकर मैं पाठ- कोंके साथ निष्ठुरताका व्यवहार नहीं करना चाहता । जो बात है वह सभी लोग समझते हैं। गोरे और कालेमें उतना ही अन्तर है जितना कि दिन और रातमें हैं। गोरी जाति दिनके समान सदा जाग्रत रहती है और कर्मशील तथा अनुसन्धानशील है; और काली जाति रातके समान निश्चेष्ट और कर्महीन है और स्वप्न देखती हुई सो रही है। इस श्यामा प्रकृतिमें यदि हो तो रात्रिके समान कुछ गम्भीरता, मधुरता, स्निग्धता, करुणा और घोर आत्मीयताका भाव हो सकता है। पर दुर्भा- ग्यवश व्यस्त और चंचल गोरोंको उसका आविष्कार करनेका अवसर