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अँगरेज और भारतवासी।
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स्त्रियाँ समाजके लिये शक्तिस्वरूप होती हैं। यदि स्त्रियाँ चाहें तो वे दो विरोधी पक्षोंको परस्पर मिला सकती हैं । किन्तु दुर्भाग्यवश वे स्त्रियाँ ही सबसे बढ़कर उन संस्कारोंके वशमें हैं । हम लोगोंको देखते ही उन ऐंग्लो-इंडियन स्त्रियों के स्नायुओंमें विकार और सिरमें दर्द होने लगता है । इसके लिये हम उन लोगोंको क्या दोष दें, यह हम लोगोंके भाग्यका ही दोष है। विधाताने हम लोगोंको ऐसा बनाया ही नहीं कि हम लोग पूरी तरह उन्हें पसन्द आते ।

इसके बाद हम लोगोंके बीचमें आकर अँगरेज लोग जिस प्रकार हम लोगोंके सम्बन्धमें बातचीत करते हैं, बिना कुछ भी परवाह किए हम लोगोंके सम्बन्धमें जिन सब विशेषणोंका प्रयोग करते हैं और हम लोगोंको बिना पूर्ण रूपसे जाने ही हम लोगोंकी जो शिकायतें और निन्दायें किया करते हैं, प्रत्येक साधारण बातमें भी हम लोगोंके प्रति उनका जो बद्धमूल अप्रेम प्रकट होता है, उस सबको कोई नया आया हुआ अँगरेज धीरे धीरे अपने अन्त:करणमें स्थान दिए बिना रह ही नहीं सकता।

हम लोगोंको यह बात स्वीकृत करनी ही पड़ेगी कि कुछ ईश्वरीय बातोंके कारण ही हम लोग अँगरेजोंकी अपेक्षा बहुत दुर्बल हैं और अंगरेज लोग हम लोगोंका जो असम्मान करते हैं उसका हम लोग किसी प्रकार कोई प्रतिकार कर ही नहीं सकते। जो स्वयं अपने सम्मानका उद्धार नहीं कर सकता उसका इस संसारमें कहीं सम्मान नहीं होता । जब विलायतसे कोई नया आया हुआ अँगरेज यहाँ आकर देखता है कि हम लोग चुपचाप सारा अपमान सहते रहते हैं तब हम लोगोंके सम्बन्धमें उसे कुछ भी श्रद्धा नहीं रह सकती।

ऐसी दशामें उन्हें यह बात कौन समझाने जायगा कि हम लोग अपमानके सम्बन्धमें उदासीन नहीं हैं बल्कि हम लोग दरिद्र हैं और