सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अँगरेज और भारतवासी।
१७

यदि अमानुषिक शक्तिकी सहायतासे सब कर्तव्योंका ठीक ठीक पालन हुआ करे तो भी वह आन्तरिक विद्वेष प्रजाको पीड़ित करता रहता है । इसका कारण यह है कि जिस प्रकार जलका धर्म्म अपना समतल ढूँढ़ना है उसी प्रकार मनुष्यके हृदयका धर्म अपना सम ऐक्य ढूँढना है । यहाँतक कि प्रेमके सूत्रसे वह ईश्वर तकके साथ अपना ऐक्य स्थापित करता है । जिस स्थानपर वह अपने ऐक्यका मार्ग नहीं पाता उस स्थानपर और जितने प्रकारकी सुविधाएँ होती हैं वे सब बहुत ही क्लिष्ट हो जाती हैं । मुसलमान राजा अत्याचारी होते थे लेकिन उनके साथ बहुतसी बातोंमें हम लोगोंकी समकक्ष- ताकी समानता थी । हम लोगोंके दर्शन और काव्य, हम लोगोंकी कला और विद्या और हम लोगोंकी बुद्धिवृत्तिमें राजा और प्रजाके बीचमें आदान-प्रदानका सम्बन्ध था। इसलिये मुसलमान हम लोगोंको पीड़ित तो कर सकते थे लेकिन वे हम लोगोंका असम्मान नहीं कर सकते थे। मन मनमें हम लोगोंके आत्मसम्मानका कोई लाघव न था--उसमें कोई कमी न थी । क्योंकि श्रेष्ठता केवल बाहुबलके द्वारा कभी किसी प्रकार दबाई ही नहीं जा सकती।

किन्तु हम लोग अँगरेजोंकी रेलगाड़ी, कल-कारखाने और राज्य- शृंखला देखते हैं और चकित होकर सोचने लगते हैं कि ये लोग मय दानवके वंशज हैं—ये लोग बिलकुल स्वतंत्र हैं, इन लोगोंके लिये कोई बात असम्भव नहीं है । बस यही समझकर निश्चिन्त भावसे हम लोग रेलगाड़ीपर सवार होते हैं, सस्ते दामपर कलोंका बना हुआ माल खरीदते हैं और सोचते हैं कि अँगरेजों के राज्यमें हम लोगोंको न तो कुछ डरनेकी आवश्यकता है न चिन्ता करनेकी आवश्यकता है और न कोई उद्योग करनेकी आवश्यकता है—केवल इतना है कि पहले