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अँगरेज और भारतवासी।
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यदि अमानुषिक शक्तिकी सहायतासे सब कर्तव्योंका ठीक ठीक पालन हुआ करे तो भी वह आन्तरिक विद्वेष प्रजाको पीड़ित करता रहता है । इसका कारण यह है कि जिस प्रकार जलका धर्म्म अपना समतल ढूँढ़ना है उसी प्रकार मनुष्यके हृदयका धर्म अपना सम ऐक्य ढूँढना है । यहाँतक कि प्रेमके सूत्रसे वह ईश्वर तकके साथ अपना ऐक्य स्थापित करता है । जिस स्थानपर वह अपने ऐक्यका मार्ग नहीं पाता उस स्थानपर और जितने प्रकारकी सुविधाएँ होती हैं वे सब बहुत ही क्लिष्ट हो जाती हैं । मुसलमान राजा अत्याचारी होते थे लेकिन उनके साथ बहुतसी बातोंमें हम लोगोंकी समकक्ष- ताकी समानता थी । हम लोगोंके दर्शन और काव्य, हम लोगोंकी कला और विद्या और हम लोगोंकी बुद्धिवृत्तिमें राजा और प्रजाके बीचमें आदान-प्रदानका सम्बन्ध था। इसलिये मुसलमान हम लोगोंको पीड़ित तो कर सकते थे लेकिन वे हम लोगोंका असम्मान नहीं कर सकते थे। मन मनमें हम लोगोंके आत्मसम्मानका कोई लाघव न था--उसमें कोई कमी न थी । क्योंकि श्रेष्ठता केवल बाहुबलके द्वारा कभी किसी प्रकार दबाई ही नहीं जा सकती।

किन्तु हम लोग अँगरेजोंकी रेलगाड़ी, कल-कारखाने और राज्य- शृंखला देखते हैं और चकित होकर सोचने लगते हैं कि ये लोग मय दानवके वंशज हैं—ये लोग बिलकुल स्वतंत्र हैं, इन लोगोंके लिये कोई बात असम्भव नहीं है । बस यही समझकर निश्चिन्त भावसे हम लोग रेलगाड़ीपर सवार होते हैं, सस्ते दामपर कलोंका बना हुआ माल खरीदते हैं और सोचते हैं कि अँगरेजों के राज्यमें हम लोगोंको न तो कुछ डरनेकी आवश्यकता है न चिन्ता करनेकी आवश्यकता है और न कोई उद्योग करनेकी आवश्यकता है—केवल इतना है कि पहले