नेसे प्यास बहुत बढ़ जाती है उसी प्रकार इस गवर्नमेण्टसे भी प्रजाके
हृदयकी तृष्णा और भी बढ़ जाती है। स्पेक्टेटर देश-देशान्तरके सब
प्रकारके भोज्य और पानीय पदार्थ बहुत अधिक परिमाणमें मँगाकर
परिपूर्ण डिनर (dinner) में बैठकर किसी तरह भी यह नहीं समझ
सकता कि उसके झरोखेसे बाहर रास्तेमें खड़े हुए ये विदेशी बंगाली
इस प्रकार भूखे कंगालोंकी तरहके भाव क्यों रखते हैं ?
लेकिन कदाचित् स्पेक्टेटर यह सुनकर प्रसन्न होगा कि उसकी बहुत ही दुष्प्राप्य सहानुभूति के अंगूर धीरे धीरे हम लोगोंके निकट भी खट्टे होते जाते हैं। हम लोग बहुत देरतक लोलुपकी तरह ऊपर आँख उठाकर देखते रहे हैं और अब अन्तमें धीरे धीरे घर लौटनेकी तैयारी कर रहे हैं। हम लोगोंके इस चिर उपवासी और क्षुधित स्वभावमें भी जो थोड़ा बहुत मनुष्यत्व बच गया था यह अब धीरे धीरे विद्रोही होता जा रहा है !
हम लोगोंने यह कहना आरम्भ कर दिया है कि क्या तुम लोग इतने श्रेष्ट हो ! तुम लोगोंने बहुत किया तो कल चलाना और तोप बन्दूक छोड़ना सीखा है, लेकिन मनुष्यमें वास्तविक सभ्यता आध्यात्मिक सभ्यता है और उस सभ्यतामें हम लोग तुमसे कहीं अधिक श्रेष्ट हैं । हम लोग तुम्हें अध्यात्मविद्या क ख ग घ से आरम्भ करके अच्छी तरह सिखला सकते हैं । हम लोगोंको तुम जो कम सभ्य समझकर अवज्ञा करते हो, यह तुम लोगोंकी अन्ध मूढ़ता है। तुम लोगोंमें हिन्दू जातिकी श्रेष्ठता समझनेकी शक्ति ही नहीं है। हम लोग फिर आँखें बन्द करके ध्यानमें बैठ जायेंगे । अब हमने तुम्हारे युरोपकी सुखासक्त चपल सभ्यताकी बाल-लीलाकी ओरसे अपनी दृष्टि हटा ली है और ।