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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/४०

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अँगरेज और भारतवासी।
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दिया है उसके द्वारा हम लोगोंकी मुमूर्षु जीवनी शक्ति फिरसे सचेतन हो रही है । हम लोगोंके हृदयमें हम लोगोंकी जो समस्त विशेष शक्ति अबतक अन्ध और जड़के समान होकर पड़ी हुई थी वह शक्ति नए प्रकाशमें फिरसे अपने आपको पहचानने लग गई है । स्वाधीन युक्ति, तर्क और विचारसे हम लोग मानो अपनी मानस-भूमिका फिरसे आविष्कार कर रहे हैं । दीर्घ प्रलय-रात्रिके अन्तमें अरुणोदय होनेपर हम लोग मानो अपने ही देशका आविष्कार करनेके लिये निकल खड़े हुए हैं। हम लोगोंने श्रुति, स्मृति, काव्य, पुराण, इतिहास और दर्शनके पुराने घने जंगल में प्रवेश किया है । हम अपने पुराने छिपे हुए धनको नए सिरेसे प्राप्त करनेकी इच्छा करते हैं । हम लोगोंके मनमें धिक्का- रका जो प्रतिघात हुआ है उसीने हम लोगोंको जोरसे फिर हमारी ही ओर फेंक दिया है। पहले आक्षेपमें हम लोग कुछ अन्धभावसे अपनी मिट्टी पकड़कर रह गये हैं-किन्तु आशा की जाती है कि एक दिन स्थिर भाव और शान्त चित्तसे अच्छे बुरेका विचार करनेका समय आवेगा और हमलोग इसी प्रतिघातसे यथार्थ गूढ शिक्षा और स्थायी उन्नति प्राप्त कर सकेंगे।

एक प्रकारकी स्याही होती है जो कुछ समयके उपरान्त कागज- पर दिखलाई ही नहीं देती और अन्तमें जब उस कागजको कुछ आँच दिखलाते हैं तब वह स्याही फिर उठ आती है। पृथ्वीकी अधि- कांश सभ्यता मानो उसी स्याहीसे लिखी हुई है । समय पाकर वह लुप्त हो जाती है और फिर शुभ संयोग पाकर नई सभ्यताके संबंधसे, नए जीवनके उत्तापसे उसका फिरसे उठआना असम्भव नहीं जान पड़ता। हम लोग तो यही आशा करके बैठे हैं और इसी बड़ी आशासे उत्साहित होकर हम लोग अपने प्राचीन पोथी पत्रे आदि लाकर उसी