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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/४४

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अँगरेज और भारतवासी।
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अनेकता सूचित होती है । आज यदि हम अंगरेजोंकी नकल बनकर किसी अँगरेजके पास सम्मान प्राप्त करनेके लिये जायें तो हमारे जो भाई अँगरेजोंकी नकल नहीं बन सकते उन लोगोंको 'अपना' कहने में हमें स्वभावतः ही कुछ संकोच होगा। उनके लिये बिना लजा अनुभव किए हमारे लिये और कोई उपाय ही नहीं है। अपने विषयमें लोगोंसे यही कहनेकी प्रवृत्ति होती है कि हम अपने गुणोंसे इन सब लोगोंसे अलग होकर स्वतंत्र जातिमें मिल गए

इसका अर्थ ही यह है कि हम अपना जातीय सम्मान बेचकर, आत्म-सम्मान मोल लें । यह एक प्रकारसे अंगरेजोंके सामने यही कहना है कि साहब इन जंगलियोंके साथ आप चाहे जैसा व्यवहार करें; परन्तु जब हम बहुत कुछ आपहीकी तरह शकल बनाकर आए हैं तब हम अपने मनमें इस बातकी बहुत बड़ी आशा रखते हैं कि आप हमें अपने पाससे दूर न कर देंगे।

अब आप ही सोच लीजिए कि इस प्रकारके कंगालपनसे कुछ प्रसाद भले ही मिल जाय, लेकिन क्या इससे कभी अपने अथवा अपनी जातिके सम्मानकी रक्षा हो सकती है ?

कर्णने जिस समय अश्वत्थामासे कहा था कि तुम ब्राह्मण हो, तुम्हारे साथ क्या युद्ध करूँ ! तब अश्वत्थामाने कहा था कि क्या तुम इसीलिये मुझसे युद्ध नहीं कर सकते कि मैं बाह्मण हूँ ? अच्छा तो लो, मैं अपना यह यज्ञोपवीत तोड़कर फेंक देता हूँ।

यदि कोई अँगरेज हमसे हाथ मिलाकर कहे अथवा हमारे नामके साथ एस्क्वायर ( Esquire=महाशय ) जोड़कर लिखे कि अच्छा जब कि तुम यथासंभव अपनी जातीयताको ताकपर रखकर आए हो तो हम तुम्हें अपने क्लबका सभासद बना लेते हैं, हम लोगोंके होट-