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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/४५

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राजा और प्रजा।
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लमें तुम्हें स्थान दिया जाता है और यदि तुम हमसे भेंट करनेके. लिये आओगे तो एकाद बार हम भी तुम्हारे यहाँ बदलेकी भेंट कर- नेके लिये तुम्हारे यहाँ आ सकेंगे, तो क्या हम उसी समय अपने आपको परम सम्मानित समझकर आनन्दके मारे फूल उठेंगे अथवा यह कहेंगे कि क्या केवल इतनेके लिये ही हमारा सम्मान है ! यदि यही बात हो तो हम अपना यह नकली वेश उतारकर फेंक देते हैं ! जब- तक हम अपनी जातिको यथार्थ सम्मानके योग्य न बना सकेंगे तब- तक हम स्वाँग सजकर और अपवाद-स्वरूप बनकर तुम्हारे दरवाजे न आवेंगे।

हम तो कहते हैं कि हमारा एक मात्र व्रत यही है । हम न तो किसीको ठगकर सम्मान प्राप्त करेंगे और न सम्मानको अपनी ओर आकृष्ट करेंगे । हम अपने आपमें ही सम्मान अनुभव करेंगे । जब वह दिन आवेगा तब हम संसारकी जिस सभा चाहेंगे उस सभामें प्रवेश कर सकेंगे । उस दशामें हमारे लिये नकली वेश, नकली नाम, नकली व्यवहार और भिक्षामें माँगे हुए मानकी कोई आवश्यकता न रह जायगी।

लेकिन इसका उपाय सहज नहीं है। हम पहले ही कह चुके हैं कि सहज उपायसे कभी कोई दुस्साध्य कार्य नहीं होता । यह कार्य बहुत ही कठिन है इसी लिये और सब कार्योंको छोड़कर केवल इसीकी ओर विशेष ध्यान देना पड़ेगा।

कार्य्य प्रवृत्त होनेसे पहले हमें यह प्रण कर लेना पड़ेगा कि जबतक वह सुअवसर न आवेगा तबतक हम अज्ञात वासमें रहेंगे।

निर्माण होनेकी अवस्थामें गुप्त रहनेकी आवश्यकता होती है। बीज मिट्टीके नीचे छिपा रहता है । भ्रूण गर्भके अन्दर गुप्तरूपसे रक्षित