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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/४९

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राजा और प्रजा।
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कहते हैं कि भाई क्या करें । बिना ऐसा किए तो वे कुछ सुनते ही नहीं, इस लिये और क्या किया जाय ! वे लोग अपने यहाँका ही दस्तूर समझते हैं।

इस प्रकार अंगरेजोंके स्वभावके कारण ही हम लोगोंको अँगरेजोंकी नकल और आडम्बर करके उनसे सम्मान पाना और काम कराना पड़ता है लेकिन फिर भी हम कहते हैं कि सबसे बढ़कर अच्छी बात यही है कि हम लोग नकल या ढोंग न करें । यदि बिना नकल किए हमारे विधाता हमें थोड़ा बहुत अधिकार न दें अथवा हमपर थोड़ा बहुत अनुग्रह न करें तो नहीं सही !

यह बात नहीं है कि हम अपने विधाताओंसे बिगड़कर या नाराज होकर यह बात कह रहे हैं। वास्तवमें हमारे मनमें बहुत ही भय है हम लोग ठहरे मिट्टीके बरतन । इन काँसके बरतनोंके साथ विवाद करना तो चूल्हे भाड़में गया यदि हम आत्मीयतापूर्वक इनसे हाथ भी मिलाने जायें तो आशंकाकी सम्भावना होती है।

इसका कारण यह है कि इतनी अनेकताके संघातमें आत्मरक्षा करना बहुत ही कठिन होता है । हम लोग दुर्बल हैं इसी लिए हम सोचते हैं कि चलो किसी अँगरेजके पास चलें, शायद वह कृपा करके प्रसन्नतापूर्वक हमें देखकर हँस दे । हमें इस बातका बहुत अधिक लोभ रहता है-इतना अधिक लोभ रहता है कि उस कृपाके सामने हम अपना यथार्थ हित तक भूल सकते हैं । अगर कोई अँगरेज हँसकर हमसे कहे कि वाह बाबू ! तुम अँगरेजी तो बुरी नहीं बोलते, तो उसके बाद अपनी मातृभाषाकी चर्चा करना हमारे लिये बहुत ही कठिन हो जाता है। हमारे जिस बाहरी अंशपर अंगरेजोंकी कृपादृष्टि पड़ती है उसी अंशको हम खूब मनोहर और चित्ताकर्षक बनाना चाहते हैं