रके पागलपनसे मूढजनस्रोतके भँवरसे यत्नपूर्वक अपनी रक्षा करते हैं।
वे इस बातकी आशा नहीं करते कि किसी विशिष्ट कानूनके संशो-
धन अथवा किसी विशिष्ट सभामें स्थान मिलनेसे ही हम लोगोंके
देशकी कोई यथार्थ दुर्गति दूर हो जायगी। वे एकान्तमें सब बातोंका
झान प्राप्त कर रहे हैं और एकान्तमें ही सब विषयोंका चिन्तन कर
रहे हैं। वे अपने जीवनके बहुत ही उच्च आदर्शमें अटल उन्नति करते
हुए चारों ओरके जनसमाजको अनजानमें ही अपनी ओर आकृष्ट कर
चारों ओर अपना उदार विश्वग्राही हृदय देकर चुपचाप
सबको अपना रहे हैं और भारतलक्ष्मी उनकी ओर स्नेहपूर्ण दृष्टिसे
देखती हुई ईश्वरसे एकान्तमनसे प्रार्थना कर रही है कि आजकलका
मिथ्या तर्क और निर्दिष्ट बातें उन्हें कभी अपने लक्ष्यसे भ्रष्ट न कर सकें
और देशके लोगोंकी विश्वासहीनता, निष्ठाहीनता और उद्देश्य के साधनके
असाध्य होनेकी झूठी कल्पना उन्हें निरुत्साह न कर दे । इस देशको
उन्नति भले ही असाध्य हो परन्तु जो इस देशकी उन्नति करेगा, असाध्य
कार्य्यका साधन ही उसका व्रत होगा।
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