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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/५९

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राजा और प्रजा।
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हमने कुछ संकोचके साथ कहा है कि अधिक निकृष्ट नहीं होते, यदि हम निर्भय होकर सच कहना चाहें तो हमें यही कहना पड़ेगा कि वे जंगली इन सभ्योंसे बहुतसे अंशोंमें कहीं श्रेष्ठ हैं। यह बात स्वयं अँगरेजोंके पत्रमें प्रकाशित हुई है कि जंगली लवेंग्युलाने अँगरे- जोंके साथ बरताव करते हुए जिस उदारता और उन्नत वीर हृदयका परिचय दिया है उसके सामने अँगरेजोंका क्रूर व्यवहार लज्जाके मारे म्लान हो गया है।

कोई कोई अँगरेज जो इस बातको स्वीकार करते हैं, बहुतसे लोग केवल इस स्वीकार करनको ही अपने मनमें अँगरेजोंके गौरवकी बात समझेंगे और हम भी ऐसा ही समझते हैं, लेकिन आजकल अँगरेजोंमें बहुतसे लोग ऐसे हैं जो इसमें अपना गौरव नहीं समझते ।

वे लोग यही समझते हैं कि आजकल धर्मनीति बहुत ही सूक्ष्म होती जा रही है। बात बातपर इतना अधिक असन्तोष प्रकाश करनेसे काम नहीं चलता। जिस समय अँगरेजोंके गौरवका मध्याह्न था उस समय वे नीतिको सूक्ष्म परिधियोंको एक ही कुदानमें लाँघ सकते थे। जब आवश्यकता होती है तब अन्याय करना ही पड़ता है। जिन दिनों नारमन जातिके डाकू समुद्रोंमें डाके डालते फिरते थे उस समय वे लोग स्वस्थ और सबल थे। आजकल उनके जो अँगरेज वंशधर दूसरी जातियोंपर बलप्रयोग करनेमें संकुचित होते हैं वे दुर्बल और रुग्ण- प्रकृतिके हैं। कैसे मेटावेली और कहाँका लवेंग्युला, हम अँगरेज तुम्हारी सोनेकी खानें और तुम्हारे चौपायोंके झुण्ड लूटना चाहते हैं, इसके लिये इतने दाव-पेच और छल-कपटकी क्या आवश्यकता है ? हम झूठी खबरें क्यों गढ़ने जायें ! अगर इसी तरहकी हमारी और भी