शताब्दिका सुकुमारहृदय बालक सेन्टिमेन्ट ( Sentiment ) के
आँसू बहाता हुआ आ पहुँचता है तब उसके साथ हम लोग हृदयसे घृणा
करते हैं। यहाँ तो संगीत, साहित्य, शिल्पकला और शिष्टाचार और
वहाँ नंगी तलवार और संकोचरहित एकाधिपत्य ।
इसीलिये आजकल हम लोगोंको अपनी शासक जातिके लोगोंमें दो तरहका सुर सुनाई पड़ता है। एक दल तो प्रबलताका पक्षपाती है और दूसरा दल संसारमें प्रेम, शान्ति और सुविचारका विस्तार करना चाहता है।
जब जातिका हृदय इस प्रकार विभक्त हो जाता है तब उसका बल टूट जाता है-अपना ही अपनेको बाधा देने लगता है। आज- कलके भारत में रहनेवाले अँगरेज इसी बातको लेकर बहुत बड़ा कटाक्ष करते हैं। वे लोग कहते हैं कि हम लोग कुछ जबरदस्ती करके जो काम करना चाहते हैं उस काममें हमारे इंग्लैण्डवाले भाई वाधा देते हैं। हमें सभी बातोंमें नैतिक कैफियत देनी पड़ती है। जिन दिनों डाकू लोग कृष्ण समुद्र में दिग्विजय करते हुए घूमते थे, अथवा जिन दिनों क्लाइबने भारत भूमिपर अंगरेजी झंडा खड़ा किया था, यदि उन दिनों उन लोगोंको नैतिक कैफियत देनी पड़ती तो अँगरेजोंको अपने घरके बाहर एक अंगुलभर भी जमीन न मिलती।
इस प्रकारकी बात कहकर चाहे जितना प्रलाप करो लेकिन अखंड दुर्दमनीय बलकी वह अवस्था किसी प्रकार लौटकर नहीं आ सकती। आज यदि कोई अत्याचारका काम करने बैठी तो सारे देशमें दो प्रका- रके मत फैल जायेंगे। इस समय यदि कोई पीड़ित व्यक्ति न्यायवि- चारकी प्रार्थना करे तो स्वार्थहानिकी संभावना होनेपर भी विवश होकर कुछ लोग उसका सद्विचार करनेके लिये तैयार हो जायेंगे ।