बहुत कुछ निश्चयपूर्वक अनुमान किया जा सकता है कि वे अपने मन
ही मन अपने जातिभाइयोंके प्राणोंकी पवित्रता बहुत अधिक समझते
हैं। यदि कोई अँगरेज किसी भारतवासीको हत्या कर डाले तो अवश्य
ही वह इस हत्यासे बहुत दुखी होता है। उसे वह अपने मनमें एक
'ग्रेट मिस्टेक' ( बहुत बड़ी भूल ) यहाँतक कि 'ग्रेट शेम'
(बहुत लज्जाकी बात ) की बात भी समझ सकता है। लेकिन इसके
बदलेमें दंडवरूप किसी युरोपियनके प्राण लेना कभी समुचित नहीं
समझा जाता । यदि कानूनमें फाँसीकी अपेक्षा कोई और छोटा दंड
निर्दिष्ट होता तो भारतवासीकी हत्याके अपराधमें अँगरेजको दंड मिल-
नेकी बहुत अधिक संभावना होती। जिस जातिको अपनी अपेक्षा
बहुत अधिक निकृष्ट समझा जाता हो उस जातिके सम्बन्धमें कानू-
नकी धाराओंमें पक्षपातहीनताका विधान भले ही हुआ करे लेकिन
हाकिमके अन्त:करणमें पक्षपातहीनताके भावका रक्षित रहना कठिन
हो जाता है। उस अवसरपर प्रमाणकी साधारण त्रुटि, गवाहकी
सामान्य भूल और कानूनकी भाषाका तिलमात्र छिद्र भी स्वभावतः
बढ़कर इतना बड़ा हो जाता है कि अँगरेज अपराधी अनायास ही
उसमेंसे निकलकर बाहर जा सकता है ।
हमारे देशके लोगोंकी पर्यवेक्षण शक्ति और घटना-स्मृति वैसी अच्छी और प्रबल नहीं है। हमें अपना यह दोष स्वीकृत करना ही पड़ेगा कि हम लोगोंके स्वभावमें मानसिक शिथिलता और कल्पनाकी उच्छृखलता है। यदि हम किसी घटनाके समय ठीक उसी जगह उपस्थित रहें तो भी आदिसे अन्ततक उस घटनाकी सारी बातें क्रमानुसार हमें याद नहीं रह सकती। इसीलिये हम लोगोंके वर्ण- नमें असंगति और संशय रहा करता है और भयके कारण अथवा