तर्कके सामने परिचित सत्य घटनाका सूत्र भी हम खा बैठते
हैं। इसी लिये हम लोगोंके गवाहोंके सच और झूठका सूक्ष्मरूपसे
निर्धारण करना विदेशी विचारकोंके लिये सदा ही कठिन होता है ।
और तिसपर अभियुक्त जन उन्हींके देशका होता है तब यह
कठिनता सौगुनी बल्कि हजार गुनी हो जाती है । और फिर विशेषतः
जब स्वभावसे ही अँगरेजोंके सामने कम पहननेवाले, कम खानेवाले,
कम प्रतिष्ठावाले और कम बलवाले भारतवासीके 'प्राणकी पवित्रता'
उनके देशभाइयोंके मुकाबलेमें बहुत ही कम और परिमित होती है
तब भारतवासियों के लिये यथोचित प्रमाण संग्रह करना एक प्रकारसे
बिलकुल असंभव हो जाता है । इस तरह एक तो हम लोगोंके गवाह
ही दुर्बल होते हैं और फिर हमारे तिल्ली आदि शरीर-मंत्र बहुत कुछ
त्रुटिपूर्ण बतलाये जाते हैं, इस लिये हम लोग बहुत ही सहजमें मर
भी जाते हैं और इस संबंधमें न्यायालयसे उचित विचार कराना भी
हम लोगोंके लिये दुस्साध्य होता है।
लज्जा और दुःखके साथ हमें इन सब दुर्बलताओंको स्वीकृत करना पड़ता है, लेकिन उसके साथ ही साथ इस सत्य बातको भी प्रका- शित कर देना उचित जान पड़ता है कि इस प्रकारकी घटनाओंके लगातार होनेके कारण इस देशके लोगोंका चित्त बहुत अधिक क्षुब्ध होता जाता है। साधारण लोग कानून और प्रमाणोंका सूक्ष्म विचार नहीं कर सकते। यह बात बार बार और बहुत ही थोड़े थोड़े समयपर देख- नेमें आती है कि भारतवासीकी हत्या करनेपर कभी किसी अँगरेजको प्राणदण्ड नहीं दिया जाता और इस बातको देखते तथा समझते हुए भारतवासियोंके मनमें अँगरेजोंकी निष्पक्ष न्यायपरताके सम्बन्धमें बहुत बड़ा सन्देह उत्पन्न होता है ।