पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अपमानका प्रतिकार।
६३


भला यह कैसी बात है कि किसी भारतवासीकी हत्याके अपराधमें आजतक एक अँगरेजको भी उपयुक्त दण्ड नहीं मिला !

यदि बार बार चोट लगनेके कारण साधारण प्रजाके हृदयमें कोई भारी घाव हो गया हो तो उस घावको चुपचाप छिपा रखना राज- भक्ति नहीं है। इसीलिये हम लोगोंकी तरफसे बाबू कहलानेवाले लोग इन सब बातोंको प्रकट रूपसे कह देना ही अपना कर्त्तव्य समझते हैं। हम लोग भारतवर्षको चलानेवाले भाफके इंजिनमें लगे हुए ताप- मानयंत्र मात्र हैं। हम लोगोंकी निजकी कोई शक्ति नहीं है। हम लोग लोहेके छोटे और बड़े विचित्र चक्करोंको चलानेकी कोई शक्ति नहीं रखते। केवल वैज्ञानिक गूढ नियमके अनुसार समय समयपर हम लोगोंका चंचल पारा अचानक ऊपरकी ओर चढ़ जाता है, लेकिन इसके लिये इंजीनियरका यह कर्त्तव्य नहीं है कि वह हमसे नाराज हो जाय । अगर वह धीरेसे एक भी मुक्का मार दे तो यह क्षुद्र क्षणभंगुर पदार्थ टूट जाय और इसका सारा पारा इधर उधर छितराकर नष्ट हो जाय। लेकिन इंजिनके बायलरमें जो ताप होता है उसके परिमाणका निर्णय करना यंत्र चलानेके कामका एक प्रधान अंग है । अँगरेज लोग प्राय: उग्रमूर्ति धारण करके कहा करते हैं कि सर्व साधारणके नाम- पर अपना परिचय देने और बोलनेवाले तुम कौन होते हो? तुम लोग तो हमारे ही स्कूलोंसे निकले हुए थोड़ेसे बातें बनानेवाले अँगरेजीदाँ हो न ?

सरकार, हम लोग कोई नहीं हैं। लेकिन तुम्हारी बेढब विरक्ति और क्रोधके कारण हम अनुमान करते हैं कि हम लोगोंको तुम बहुत ही सामान्य नहीं समझते और फिर हमें सामान्य समझना तुम्हारे लिये उचित भी नहीं है । यद्यपि हम शिक्षित लोग संख्यामें बहुत ही थोड़े हैं तो भी विच्छिन्न-समाज भारतवर्षमें केवल शिक्षित सम्प्रदायमें