ही कुछ शिक्षा और हृदयकी एकता है और यही शिक्षित लोग ही
भारतवासियोंके हृदयकी वेदना स्पष्ट रूपसे प्रकट कर सकते हैं
और अनेक उपायोंसे उस वेदनाको संचारित भी कर सकते हैं।
सरकारकी राजनीतिका यह एक प्रधान अंग होना चाहिए कि वह
बराबर मनोयोगपूर्वक इस बातकी आलोचना करती रहे कि इस शिक्षित
सम्प्रदायके हृदयपर कब और किस प्रकारका आघात, अभिघात होता
है । लक्षणोंसे जहाँतक मालूम होता है वहाँतक यही पता चलता है
कि सरकार इस विषयमें बिलकुल उदासीन नहीं है।
हम जिस घटनाकी आलोचना कर रहे हैं वह दो कारणोंसे हमारे हृदयपर चोट पहुँचाती है । पहला कारण यह है कि जब कभी अत्या- चारकी कोई बात सुनाई पड़ती है तब उस अत्याचारके लिये उपयुक्त दण्डकी आशासे चित्त व्यग्र हो जाता है और चाहे जिस लिये हो लेकिन जब अपराधी दण्डसे बच जाता है तब हृदय बहुत क्षुब्ध होता है । दूसरा कारण यह है कि इन सब घटनाओंसे यह पता चलता है कि हम लोगोंका बहुत बड़ा जातीय अपमान हुआ है, इसलिये हम लोग बहुत मर्माहत होते हैं।
अपराधीका छूट जाना भले ही बुरा हो लेकिन अदृष्टवादी भारत- वर्ष न्यायालयके विचारके सामने कुछ भी असंभव नहीं समझता । कानून इतना जटिल है, गवाहियाँ इतनी फिसल जानेवाली हैं और ममत्व- हीन अवज्ञाकारी विदेशियोंके लिये इस देशके लोगोंका चरित्रज्ञान इतना दुर्लभ है कि मुकदमा, जिसका परिणाम बहुत अनिश्चित होता है, बिलकुल जूएके खेलकी तरह जान पड़ता है। इसीलिये जिस प्रकार जूएके खेलमें एक प्रकारका मोहकारी उत्तेजन होता है उसी प्रकार हमारे देशमें बहुतसे लोगोंको मुकदमेबाजीका एक नशासा हो जाता है। इसलिये