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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/८१

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राजा और प्रजा।
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अत्याचारी, अपनी बराबरीके लोगोंके प्रति ईर्ष्यान्वित और ऊपरवाले लोगोंके सामने बिके हुए गुलाम बनना सीखते हैं। हम लोगोंकी हरदमकी उसी शिक्षामें हम लोगोंके सारे व्यक्तिगत और जातीय अपमानोंका मूल छिपा हुआ है। गुरुके प्रति भक्ति करके, प्रभुकी सेवा करके और अन्य मान्य लोगोंका यथोचित सम्मान करके भी मनुष्यमात्रमें जो एक मनुष्योचित आत्ममर्यादा रहनी चाहिए उसकी रक्षा की जा सकती है। लेकिन यदि हमारे गुरु, हमारे प्रभु, हमारे राजा या हमारे मान्य लोग उस आत्ममर्य्यादाका भी अपहरण कर लें तो उससे मनुष्यत्वमें बड़ा भारी हस्तक्षेप होता है। इन्हीं सब कारणोंसे हम लोग सचमुच ही मनुष्यत्वसे बिलकुल हीन हो गए हैं और इन्हीं कारणोंसे एक अँगरेज दूसरे अँगरेजके साथ जैसा व्यवहार करता है उस प्रकार वह हमारे साथ व्यवहार नहीं करता।

घर और समाजकी शिक्षासे जब हम उस मनुष्यत्वका उपार्जन कर सकेंगे तभी अँगरेज हम लोगोंके प्रति श्रद्धा करनेको बाध्य होंगे और हमारा अपमान करनेका साहस न करेंगे। अँगरेज सरकारसे हम लोग बहुत कुछ आशा कर सकते हैं लेकिन स्वाभाविक नियमको बदलना उसके लिये भी सम्भव नहीं है। और संसारका यह एक स्वाभाविक नियम है कि हीनताके प्रति आघात और अवमानना होती ही है।