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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/८५

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राजा और प्रजा।
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यह बात सदा देखनेमें आती है कि जब दो पक्षों में विरोध होता है और शान्तिभंगकी आशंका उपस्थित होती है तब मजिस्ट्रेट सूक्ष्म विचारकी ओर नहीं जाते और दोनों ही पक्षोंको समान भावसे दबा रखनेकी चेष्टा करते हैं। क्योंकि साधारण नियम यही है कि एक हाथसे कभी ताली नहीं बजती। लेकिन हिन्दुओं और मुसलमानोंके विरोधके सम्बन्धमे सर्व साधारणका यह विश्वास दृढ़ हो गया है कि दमन अधिकांश हिन्दुओंका ही होता है और आश्रय अधिकांश मुसलमानोंको ही मिलता है। इस प्रकारके विश्वासके उत्पन्न हो जानेसे दोनों सम्प्रदायोंमें ईर्ष्याकी आग और भी अधिक भड़क उठती है और जिस स्थानपर कभी किसी प्रकारका विरोध नहीं होता उस स्थानपर भी शासक लोग सबसे पहले निर्मूल आशंकाकी कल्पना करके एक पक्षका बहुत दिनोंका अधिकार छीनकर दूसरे पक्षका साहस और हौसला बढ़ा देते हैं और इस प्रकार बहुत दिनोंतक चलनेवाले विरोधका बीज बो दिया जाता है।

हिन्दुओंके प्रति सरकारका किसी विशेष प्रकारका विराग न होना ही सम्भव है लेकिन केवल सरकारकी पालिसीके द्वारा ही उसका सारा काम नहीं चल सकता। प्राकृतिक नियम भी कोई चीज है। स्वर्गराज्यके पवन देवका किसी प्रकारका असाधु उद्देश्य नहीं हो सकता, लेकिन फिर भी उत्तापके नियमके अधीन होकर उनके मर्त्यराज्यके अनुचर उनचास वायु यहाँ अनेक अवसरोंपर एकाएक प्रबल आँधी चला देते हैं। हम लोग सरकारके स्वर्गलोकका ठीक ठीक हाल नहीं कह सकते, वह हाल लार्ड लैन्सडाउन और लार्ड हैरिस ही जानते हैं; किन्तु हम लोग अपनी चारों ओरकी हवामें कुछ गड़बड़ी अवश्य देखते हैं। स्वर्गधामसे 'मा भैः मा भैः' की आवाज आती है लेकिन हमलोगोंके आसपास जो देवचर लोग