पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/९

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रवीन्द्र बाबूके अन्य ग्रन्थ।

१ स्वदेश। इसमें रवीन्द्रबाबूके १ नया और पुराना, २ नया वर्ष, ३ भारतका इतिहास, ४ देशी राज्य, ५ पूर्वीय और पाश्चात्य सभ्यता, ६ ब्राह्मण, ७ समाजभेद, और ८ धर्मबोधका दृष्टान्त, इन आठ निबन्धोंका हिन्दी अनुवाद है। अपने देशका असली स्वरूप समझनेवालोंको, उसके अन्तःकरण तक प्रवेश करनेकी इच्छा रखनेवालोंको, तथा पूर्व और पश्चिमका अन्तर हृदयंगम करने वालोंको ये अपूर्व निबन्ध अवश्य पढ़ने चाहिए। बड़ी ही गंभीरता और विद्वत्तासे ये निबन्ध लिखे गये हैं। तृतीयावृत्ति हो चुकी है। मू॰ ॥″)

२ शिक्षा। इसमें १ शिक्षा-समस्या, २ आवरण, ३ शिक्षाका हेरफेर, ४ शिक्षा-संस्कार और ५ छात्रोंसे संभाषण, इन पाँच निबन्धों के अनुवाद हैं। इनमें शिक्षा और शिक्षापद्धतिके सम्बन्धमें बड़े ही पाण्डित्यपूर्ण विचार प्रकट किये गये हैं। इनसे आपको मालूम होगा कि हमारी वर्तमान शिक्षापद्धति कैसी है, स्वाभाविक शिक्षापद्धति कैसी होती है और हमें अपने बच्चोंको कैसी शिक्षासे शिक्षित करना चाहिए। मूल्य नौ आने।

३ आँखकी किरकिरी। यह रवीन्द्रबाबूके बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यास 'चोखेर वालि' का हिन्दी अनुवाद है। वास्तव में इसे उपन्यास नहीं किन्तु मानस शास्त्र के गूढ़ तत्वोंको प्रत्यक्ष करानेवाला मनोमोहक चित्रपट कहना चाहिए। मनुष्योंके विचारोंमें बाहरी घटनाओं और परिस्थितियों के कारण जो अगणित परिवर्तन होते हैं उनका आभास आपको इसकी प्रत्येक पंक्ति और प्रत्येक वाक्यमें मिलेगा। सहृदय पाठक इसे पढ़कर मुग्ध हो जायँगे। बड़ा ही सरस उपन्यास है। जो लोग केवल प्रेम-कथायें पढ़ना पसन्द करते हैं, उनका भी इससे खूब मनोरंजन होगा। क्योंकि इसमें भी एक प्रेम-कथा ग्रंथित की गई है। अनुवाद बहुतही उत्तम हुआ है। तृतीयावृत्ति। मू॰ १॥″)

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