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राजा और प्रजा।
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यद्यपि अँगरेज हम लोगोंके एकेश्वर राजा हैं और उनकी शक्ति भी अपरिमित है, तथापि वे लोग इस देशमें डरते डरते ही वास करते हैं। क्षण क्षणपर उनके इस डरका पता पाकर हम लोग विस्मित होते हैं। बहुत दूरपर बैठे हुए रूसके पैरोंकी आहटका केवल अनुमान करके ही वे लोग जिस प्रकार चकित हो जाते हैं उसका हम लोग बहुत ही दुःखके साथ अनुभव करते हैं। क्योंकि जब जब उनका हृदय काँपता है तब तब हमारी भारत-लक्ष्मीके शून्यप्राय भांडारमें भूकम्प उपस्थित हो जाता है और इस दीन पीड़ित और कंगाल देशके लोगोंकी भूख मिटानेवाला अन्न क्षण भरमें तोपका गोला बन जाता हैं-हमारे लिये यह लघुपाक खाद्य पदार्थ नहीं है।

बाहरके प्रबल शत्रुके सम्बन्धमें इस प्रकारकी सचकित सतर्कताका समूलक कारण हो भी सकता है, उसकी भीतरी बातें और जटिल तत्त्व हम लोग नहीं समझते।

लेकिन इधर थोड़े दिनोंसे लगातार एकके बाद एक जो कई अभावनीय घटनाएँ हो गई हैं उनसे हमें सहसा यह मालूम हुआ है कि हम लोग बिना कोई चेष्टा किए और बिना किसी कारणके भय उत्पन्न कर रहे हैं। हम लोग भयंकर हैं! आश्चर्य! पहले हमें कभी इस बातका सन्देह भी नहीं हुआ था।

इतनेमें ही हम लोगोंने देखा कि सरकार बहुत ही चकित भावसे अपनी पुरानी दण्डशालामेंसे कई अव्यवहृत कठोर नियमोंक प्रबल लोहेके सिक्कड़ बाहर निकालकर उनका मोरचा छुड़ानेके लिये बैठी है। प्रचलित कानूनके मोटे रस्सोंसे भी अब वह हम लोगोंको बाँधकर नहीं रख सकती-हम लोग बहुत ही भयंकर हो गए हैं।