एक दिन हमने सुना कि अपराधीको अच्छी तरह समझ-बूझकर पकड़नेमें असमर्थ होकर हमारी क्रुद्ध सरकारने गवाह, सबूत, विचार, विवेचना आदिके लिये विलम्ब न करके अचानक सारे पूना शहरकी छातीपर राजदण्डका पत्थर रख दिया। हमने सोचा कि पूना बड़ा भयंकर शहर है! भीतर ही भीतर न जाने उसने कौनसा बड़ा भारी उपद्रव डाला है!
लेकिन आजतक उस भारी उपद्रवका किसीको कुछ भी पता न लगा।
हम चुपचाप बैठे हुए अभी यही सोच रहे थे कि यह बात सचमुच हुई है या हम स्वप्न देख रहे हैं कि इतनेमें तारसे खबर आई कि राजप्रासादके गुप्त शिखरसे एक अज्ञात अपरिचित और वीभत्स कानून बिजलीकी तरह आ गिरा और नाटू भाइयोंको देखते देखते न जाने कहाँ उड़ा ले गया। देखते देखते सारे बम्बई प्रदेशके ऊपर धना काला बादल छा गया और जबरदस्त शासनकी गड़गड़ाहट, वज्रपात और शिलावृष्टिकी नौबत देखकर हमने सोचा कि यह तो नहीं मालूम कि अन्दर ही अन्दर वहाँ क्या हो रहा है लेकिन इतना बहुत अच्छी तरह दिखाई दे रहा है कि बात साधारण नहीं है! मराठे लोग बहुत भयंकर हैं!
एक ओर पुराने कानूनके सिक्कड़का मोरचा साफ हुआ और दूसरी और राजकीय कारखानेमें नए सिक्कड़ बनानेके लिये भीषण हथौड़ेका शब्द हो रहा है! इस शब्दसे सारा भारत काँप उठा है! लोगोंमें भयंकर धूम मच गई है! हम लोग बड़े ही भयंकर हैं!
अबतक हम लोग इस विपुला पृथ्वीको अचला समझा करते थे क्योंकि इस प्रबला पृथ्वीके ऊपर हम लोग जितने निर्भर हैं और उसके